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बिहार विधासभा आम चुनाव 2020 तय करेंगे देश की राजनीति की दिशा ,  केंद्र सरकार के किसान ,मजदूर व मुस्लिम समाज संबंधी विधेयक के बाद बिहार का पहला चुनाव

 पटना [ए एस टीम] बिहार विधान सभा आम चुनाव सीट बटवारे पर सभी गठबंधन माथापच्ची करने में जुटे है वहीँ अपने सहयोगियों को संभालने में गठबंधन के नेता कसरत र रहे हैं . बिहार के चुनाव का फैसला जो भी हो वह देश की राजनीति की दिशा बदलने वाला जरुर साबित हो गया . उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है वहीँ यह चुनाव दो युवा नेताओं राजद के तेजस्वी यादव और एलजेपी के चिराग पासवान के भविष्य का फैसला करने वाला है .हलाकि पासवान के पास तेजस्वी के जैसा जनाधार नहीं है .इसके बावजूद वे भाजपा के   सहारे बिहार में अपनी शक्ति दिखाने का प्रयास जरुर करते दिखाई दे रहे है . करीब 7 करोड़ 29 लाख 27 हजार 396 मदताओं में 3 करोड़ 79 लाख 12 हजार 127 पुरुष , 3 करोड़ 39 लाख 7 हजार 979 महिला व 2344 त्रितीय पंथी मद्तादाता हैं . विधानसभा की 243 सीटों में पहले चरण में 71 सीटों पर 28 अक्टोबर को मतदान होगा .इसी तरह दुसरे चरण में 3 नवम्बर को 94 व तीसरे एवं अंतिम चरण में 7 नवम्बर को 78 सीटों पर मतदान होगा .  देश की राजनीति में बिहार के चुनाव अहम् भूमिका निभाते रहे हैं इस बार भी बिहार विधान सभा चुनाव 2020 देश की राजनीति की दिशा तय करेंगे . हलाकि की केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार पर इसका कोई असर तो नहीं पड़ेगा लेकिन देश की राजनिति में दिशा जरुर तय करेंगे . बिहार के कुछ हिस्सों व जातीय समूहों में अपना जनधार रखने वाले छोटे दल किस गठबंधन के साथ जायेंगे .अभी तक यह साफ नहीं हुआ है लेकिन जिसके साथ जायेंगे उस गठबंधन को लाभ जरुर मिलेगा .10 नवम्बर को मतगणना के बाद तय हो जायेगा की केंद्र सरकार की नीतियों व हाल की घटनाओं के आलावा सांसद में किसानों ,मजदूरों से संबंधित विधेयक का क्या असर होता है . बिहार में भाजपा और जेडीयू एक साथ  होने से  राजग का मत प्रतिशत अधिक हो रहा है . एलजीपी के चिराग पासवान लगातार मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर हमले करते रहे हैं लेकिन राजग से अलग जाने पर उनका बहुत अच्छा भविष्य दिखाई नहीं दे रहा है .वे राजग से अलग जाने की बजाय उसमें ही रहकर एक युवा चेहरा के रूप में अपनी छवि निखारने में जरुर कामयाब हो सकते हैं .यही कारन है की वे नितीश का विरोध करने के बावजूद फिलहाल मोदी के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं . बिहार में 1995 से 2005 तक लालूप्रसाद  यादव व राबडी देवी और 2005 से  2020 तक 15 वर्ष नितीश कुमार ने हाथ में सत्ता रही है .अब जहाँ राजग में रहकर नितीश कुमार अगली बार मुख्यमंत्री का चेहरा बन चुके हैं वहीँ लालू यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव युवा नेतृत्व के रूप में महागठबंधन से मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने के लिए अपनी ताकत लगा रहे है . बिहार की राजनीति में जाति समीकरण महेशा हाबी रहे है .कांग्रेस – राजद महागठबंधन में सीटों के बटवारे पर निर्णय हो गया है जिसके अनुसार राजद 144 , कांग्रेस 70 ,भाकपा सीपीआय 6 ,माकपा 4 ,भाकपा माले 19 सीते हिस्से में मिली हैं .राजद अपने कोटे से वीआयपी व झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को सीटें देने की घोषणा करने वाली थी इसी बीच वीआयपी अध्यक्ष   मुकेश सहानी ने महागठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी है .उनके पप्पू यादव या उपेन्द्र कुशवाहा के खेमे में जाने की संभावना जताई जा रही है .इसके बावजूद राजद अपने साथ लाने का प्रयास कर रही है .उपेन्द्र कुशवाहा रालोसपा , बसपा व कुछ अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाकर मुख्यमंत्री पद के तीसरे उम्मेदवार के रूप में जनता के समक्ष दावेदारी पेश करने की तैयारी में लगे है . दोनों गठबंधनों में किसी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में नया समीकरण बन सकता है हलाकि इसके संभावना कम है फिर भी फैसला राज्य की जनता को करना है .फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के पार्टी से जाने के महागठबंधन में आने के बाद बिहार विधानसभा का यह पहला चुनाव है . इस बार कन्हैया कुमार के रूप में एक नया युवा नेता उभर कर सामने आया है .

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