मुंबई , आरक्षण की मांग कर रहे मराठा समुदाय का समर्थन करते हुए एक बयान में महाराष्ट्र एनसीपी के वरिष्ठ नेता पारसनाथ तिवारी ने कहा है की मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि जब मराठा समुदाय को आरक्षण देने के मामले में सभी दल सहमत हैं, तो केंद्र को पहल करके कोई रास्ता जरूर निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय आर्थिक और समाजिक तौर पर विकास की दौड़ में पीछे छूट गया है, इसलिए सभी की जिम्मेदारी है कि इस समुदाय को ताकत प्रदान करें।
एनसीपी नेता तिवारी ने कहा कि मराठा समुदाय वीर, स्वाभिमानी और देशभक्त समुदाय है। महाराष्ट्र और देश के विकास में इस समाज का योगदान अतुलनीय है। देश का इतिहास वीर मराठा समाज का ऋणी है। इसी समाज ने हमें सबसे पहले स्वतंत्रता, स्वाभिमान का अर्थ समझाया है। इस समाज के उत्थान के लिए हर संभव प्रयास किये जाने चाहिए। आरक्षण के साथ साथ सरकार को मराठा आयोग और मराठा विकास महामंडल का भी गठन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में 1992 में दिए गए फैसले पर दोबारा विचार करने से मना कर दिया है , साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण को भी असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है । 2018 में भारत सरकार ने राज्य के मराठा वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था, यह आरक्षण ओबीसी जातियों को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण से अलग था । मराठा वर्ग को अलग से आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जज जस्टिस गायकवाड कमिटी की रिपोर्ट को आधार बनाया ।
इसमें मराठा वर्ग के लिए विशेष उपाय करने की सिफारिश की गई थी, इस विशेष आरक्षण के लागू होने से महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 60 प्रतिशत से भी अधिक हो गया , इसे आधार बनाते हुए कई याचिकाकर्ता बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे ।2019 में दिए फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि सामान्य स्थितियों में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत होनी चाहिए लेकिन असाधारण स्थिति में किसी वर्ग को विशेष आरक्षण दिया जा सकता है। इस दलील को आधार बनाते हुए हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी लेकिन इसे घटाकर शिक्षा के लिए 13 प्रतिशत और नौकरी के लिए 12 प्रतिशत कर दिया ।
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी । मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया, सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने अपने फैसले में सबसे पहले कहा है कि इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं है , ऐसे में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत बनी रहेगी ।कोर्ट ने इसके परे जा कर दिए गए मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है ।जजों ने यह भी कहा है जिस गायकवाड कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर आरक्षण दिया गया था, उस में कहीं भी नजर नहीं आता है कि राज्य में कोई ऐसी असाधारण स्थिति थी, जिसके चलते किसी वर्ग को विशेष आरक्षण देना जरूरी हो गया था ।
कोर्ट ने संविधान के 102 वें संशोधन और अनुच्छेद 342A को भी संवैधानिक करार दिया है।इससे भविष्य में यह होगा कि राज्य सरकार को किसी वर्ग को SEBC की लिस्ट में जोड़ने के लिए राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजनी होगी, राष्ट्रपति ,राज्यपाल और राज्य सरकार से चर्चा कर लिस्ट में बदलाव को मंजूरी देंगे ।