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ऑन्को (कैंसर) को हराकर नया जीवन पाने वालों के सशक्तिकरण के साथ, मेडिका कैंसर के इलाज के लिए पूरी तरह तैयार

मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] साल 2022 में विश्व कैंसर दिवस का थीम उपचार सेवाओं में मौजूद फासले को मिटाना है। भले ही आधुनिक समय में कैंसर की रोकथाम, इसके डायग्नोसिस तथा उपचार के क्षेत्र में हमने आश्चर्यजनक तरक्की हासिल कर ली हो, लेकिन जब कैंसर को ठीक करने की बात आती है तो हममें से कई लोग बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से भी वंचित रह जाते हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले के रूप में, हमारा उद्देश्य कारगर तरीकों से इस फासले को मिटाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना है। जिन लोगों को कैंसर के इलाज की जरूरत है, उन्हें हर मोड़ पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति की आय, शिक्षा, भौगोलिक स्थिति, तथा उम्र, विकलांगता और जीवन-शैली के आधार पर भेदभाव जैसी कई बातें हैं, जो मरीजों के इलाज पर बुरा असर डाल सकती हैं।

      मेडिका पूर्वी भारत में सबसे तेजी से विकसित होने वाला हेल्थ-केयर ग्रुप है, जो कोलकाता में कैंसर के इलाज के लिए विश्वस्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित केंद्र की स्थापना के लिए तैयार है। परंतु एक ज़िम्मेदार सेवा प्रदाता के रूप में हमें इस बात का भी है एहसास है कि केवल अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से 360-डिग्री स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर पाना संभव नहीं होगा। इसी वजह से मेडिका कैंसर हॉस्पिटल ने ऑन्को (कैंसर) को हराकर नया जीवन पाने वाले लोगों के सशक्तिकरण को भी अपनी कैंसर देखभाल सेवाओं के एक अभिन्न अंग के रूप में शामिल किया है। 

विश्व कैंसर दिवस से ठीक एक दिन पहले, मेडिका कैंसर हॉस्पिटल ने बड़े गर्व के साथ ऑन्को (कैंसर) को हराकर नया जीवन पाने वाले अपने पहले तीन मरीजों को कर्मचारियों के दल में मेडिकन्स के रूप में शामिल किया है। साल 2019 में 46 साल की रीमा रॉय को स्तन कैंसर का पता चला था। उनके आर्म पिट और स्तन में गांठें थीं, जिसे उन्होंने स्त्री-रोग विशेषज्ञ को दिखाया। उस चिकित्सक द्वारा उन्हें आगे की जांच के लिए एक ऑन्कोलॉजिस्ट के पास भेजा गया, क्योंकि उन्हें इस बात का संदेह था कि यह गांठ कैंसर भी हो सकती है। श्रीमती रीमा अपने परिवार के एक मित्र के माध्यम से डॉ. सौरव दत्ता से मिलीं। उनकी बायोप्सी हुई और वही हुआ जिसका उन्हें डर था। नवंबर 2019 में रीमा का कीमोथेरेपी सेशन शुरू हुआ, और उन्हें इस तरह के 21 सेशन से गुजरना पड़ा। अब वह कैंसर से पूरी तरह मुक्त हो चुकी हैं और उन्हें हर 6 महीने में एक बार चेक-अप करवाना पड़ता है। मेडिका ने नई ऑन्कोलॉजी यूनिट के लिए ऑपरेशन विभाग में रीमा को नियुक्त किया है।

 खुदीराबाद के रहने वाले 38 वर्षीय सुरोजीत मिरधा को 3.11.2018 को मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में पहली बार पेनिस के कैंसर का पता चला था। करीब-करीब अगस्त 2018 से उन्हें अपने शरीर के उस अंग में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था और शुरुआत में उन्होंने एक स्थानीय डॉक्टर से सलाह ली थी। उन्हें दवाइयां लेने की सलाह दी गई और लगभग तीन महीने तक उन्होंने दवाइयों का सेवन किया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों से परामर्श किया और बायोप्सी के नतीजों से यह बात सामने आई कि उस अंग में कैंसर विकसित हो रहा था। नवंबर 2018 के पहले सप्ताह में कैंसर का पता चलने के बाद उनका इलाज शुरू किया गया, और 10.12.2018 को उनकी सर्जरी की गई। तकरीबन 15 दिनों के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। शुरुआत में तरल पदार्थों की निकासी के लिए लगाए गए कैथेटर और ट्यूबों को हटाने के लिए उन्हें 15 दिनों के बाद अस्पताल आने की सलाह दी गई थी। फिलहाल उन्हें साल में एक बार चेक-अप कराने के लिए कहा गया है। उन्हें ऑपरेशन के बाद कम-से-कम डेढ़ साल तक हल्का काम करने के लिए कहा गया, जब तक कि ऑपरेशन के आसपास का हिस्सा पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता। पहले सुरोजीत ठेकेदारों के नीचे भवन निर्माण में दिहाड़ी मजदूरी का काम किया करता था। हालांकि उसे लगता है कि वह फिर से काम शुरू करने के लिए पूरी तरह फिट है, लेकिन बदकिस्मती से उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली। सुरोजीत के परिवार में उसके पिता, माता, पत्नी तथा 16 और 13 साल के दो बेटे हैं। उसके इलाज पर लगभग 250,000/- रुपये खर्च किए गए, जिसकी व्यवस्था उस समय कई लोगों से पैसे मांगकर और दान के माध्यम से की गई थी। मेडिका ने सुरोजीत को अपनी नई ऑन्कोलॉजी यूनिट में हाउसकीपिंग ऑपरेटिव के रूप में नियुक्त किया है।

खुदीराबाद निवासी 43 वर्षीय बिमल साहा दिसंबर 2010 के आखरी हफ्ते से लेकर अगले 8 महीनों से अधिक समय से लगातार बुखार से पीड़ित रहे। इस दौरान, वे बीमारी का सही तरीके से पता लगाने और इलाज के लिए कई स्थानीय डॉक्टरों के पास गए। इस बीच पता चला कि वे टाइफाइड, पीलिया, टीबी आदि रोगों से ग्रस्त थे और विभिन्न तरीकों से उनका इलाज किया जा रहा था, इसके बावजूद बुखार पूरी तरह से दूर नहीं हुआ था। स्थानीय डॉक्टरों से इलाज कराते हुए यह बात सामने आई कि, उनके गले के आसपास थोड़ी सूजन थी जिसकी पहचान सर्वाइकल लिम्फैडेनोपैथी के रूप में की गई। डॉक्टरों को यह महसूस हुआ कि इस प्रकार की सूजन कैंसर हो सकती है और इसके लिए बायोप्सी की जरूरत होगी, लिहाजा उन्होंने उसे अस्पताल में भर्ती कराने का सुझाव दिया। बिमल पहली बार 23.08.2011 को सरकारी कैंसर अस्पताल गए और बाद में उन्हें सर्जरी कराने की सलाह दी गई। गांठ को हटाने के लिए सर्जरी की गई और वे लगभग दो हफ्तों तक अस्पताल में भर्ती रहे। उनकी बायोप्सी की रिपोर्ट से यह बात सामने आई थी कि सूजन वास्तव में कैंसर ही था, और उन्हें तुरंत कीमोथेरेपी शुरू कराने की सलाह दी गई। बिमल को कीमोथेरेपी के 10 सेशन से गुजरना पड़ा, और यह लगभग 2012 के अंत तक जारी रहा। शुरुआत में उन्हें हर महीने में एक बार, फिर हर 6 महीने में एक बार और अंत में साल में एक बार चेक-अप कराने के लिए कहा गया। उन्हें अपने इलाज पर कुल मिलाकर लगभग 200,000/- रुपये खर्च करने पड़े, जिससे उनकी जमा पूंजी पूरी तरह खत्म हो गई और उन्हें अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों से पैसे भी उधार लेने पड़े। बिमल साहा अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहते हैं। उनके पास आमदनी का कोई सही जरिया नहीं था, जिसे देखते हुएमेडिका ने बिमल को अपनी नई ऑन्कोलॉजी यूनिट के हाउसकीपिंग विभाग में नियुक्त किया है।

ये असल ज़िंदगी के हीरो हैं जिन्होंने कैंसर का डटकर मुकाबला किया, सामाजिक दबावों और पैसों की तंगी के साथ-साथ तमाम बाधाओं को पार किया और आज तक हार नहीं मानी। ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर हम उनकी हिम्मत और जज़्बे को सलाम करते हैं।

मेडिका ने हमेशा यही माना है कि अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल पूरे दिल से किया जाना चाहिए। टेक्नोलॉजी मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है जो अस्पताल में रहने की अवधि को कम करने में सहायता करती है और इस तरह इलाज के खर्च में कमी आती है, चिकित्सा के बेहतर परिणाम सामने आते हैं तथा मरीज जल्द-से-जल्द स्वस्थ होते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अब मेडिका ने भी दा विंची Xi(शी) सिस्टम को शामिल किया है, जो अब सर्जरी करने वाले डॉक्टरों को मल्टी-क्वाड्रंट एक्सेस प्रदान करने के साथ-साथ उपयोग को बेहतर व आसान बनाता है, तथा विभिन्न प्रकार की सर्जरी हेतु न्यूनतम चीर-फाड़ के विकल्प को सक्षम बनाने के लिए उपकरणों का विस्तृत पोर्टफोलियो और एक इंटीग्रेटेड टेबल प्रदान करता है। महामारी के दौरान, चिकित्सा क्षेत्र में – खास तौर पर कैंसर देखभाल के क्षेत्र में रोबोट-असिस्टेड सर्जरी (RAS) जैसी न्यूनतम चीर-फाड़ वाली सर्जरी की संख्या में वृद्धि हुई थी। इससे यही संकेत मिलता है कि रोगियों और सर्जनों के कुछ वर्ग अब इस प्रक्रिया को इस वजह से चुन रहे हैं – क्योंकि यह ज्यादा सटीक होने के साथ-साथ ऑपरेशन के बाद न्यूनतम देखभाल की वजह से सर्जन और रोगी के लिए बिल्कुल सुरक्षित है।

इस मौके पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, डॉ. सौरव दत्ता, निदेशक, मेडिका कैंसर हॉस्पिटल, ने कहा, “ज्यादातर मामलों में कैंसर से बचे लोग काम करने के लिए पूरी तरह फिट होते हैं। यह सिर्फ हमारा नजरिया और हमारी सोच है, जिसकी वजह से हमें लगता है कि वे अब काम नहीं कर पाएंगे, लंबी छुट्टियां लेंगे, और शायद टिके नहीं रहेंगे। कैंसर का इलाज करने के लिए, हमें इन रोगियों की मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दों को संबोधित करना चाहिए और उन्हें किसी प्रकार की नौकरी उपलब्ध कराना सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। हमारे कैंसर हॉस्पिटल में, कैंसर को हराकर नया जीवन पाने वाले ये लोग दूसरे मरीजों के साथ बातचीत करेंगे, जिससे उन मरीजों और उनके परिवार के सदस्यों का हौसला बढ़ेगा। इस तरह कैंसर से बचे लोगों को भी गर्व की अनुभूति होगी और उन्हें महसूस होगा कि कैंसर से पीड़ित होना कोई बोझ नहीं है। ज़िंदगी का सफ़र आगे बढ़ते रहना चाहिए।”

डॉ. आलोक रॉय, सदस्य, फिक्की स्वास्थ्य सेवा समिति, तथा अध्यक्ष, मेडिका ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स ने डॉ. सौरव दत्ता के विचारों के साथ सुर में सुर मिलाते हुए इस बात को दृढ़ता से कहा कि, “कैंसर के इलाज के लिए अधिक दयालुतापूर्ण तरीके से काम करने की जरूरत है। चाहे हम कितनी भी बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल करें, यह सिर्फ शरीर के अंग में मौजूद रोग को ठीक करता रहेगा। उनकी मानसिक चिंताओं को दूर करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए, मुख्यधारा में वापस लाने के लिए उनका सशक्तिकरण किया जाना चाहिए तथा अपने जीवन को नए सिरे से तैयार करने में उनकी मदद की जानी चाहिए। मेडिका में, हमारी क्लिनिकल टीम ने कैंसर के मरीजों के इलाज में यह अच्छा बदलाव लाने तथा रोजमर्रा की जिंदगी में उनके प्रति लोगों के नजरिए को बदलने का संकल्प लिया है।

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