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पिछले 5 सालों के दौरान बच्चों और किशोरों में उच्चतम निकट-दृष्टिदोष के मामलों में लगातार बढ़ोतरी 

इम्प्लांटेबल लेंस की मदद से इस बीमारी को आसानी से ठीक किया जा सकता है- डॉनीता शाह

 मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] पिछले 5 सालों के दौरान किशोरों में गंभीर दृष्टिदोष की वजह से बहुत अधिक पावर वाले चश्मे लगवाने के मामलों में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है।मुंबई के चेंबूर स्थित डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल में क्लिनिकल सर्विसेज की प्रमुखडॉ. नीता शाह ने इस आशय की जानकारी है।                                         मुंबई के चेंबूर स्थित डॉअग्रवाल्स आई हॉस्पिटल में क्लिनिकल सर्विसेज की प्रमुखडॉनीता शाह जानकारी देते हुए कहती हैं, “पिछले कुछ सालों में तरह तरह के गैजेट्स और इसी तरह की नजदीक की दूसरी चीजों को देखने की गतिविधियों में बढ़ोतरीबाहरी गतिविधियों में कमीऔर सही मात्रा में पोषण से संबंधित कारकों को ऐसे मामलों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।                       जब कोविड अपने चरम पर थातो उस दौरान युवाओं एवं बुजुर्गों दोनों के लिए बाहरी गतिविधियाँ प्रतिबंधित थीजिसके चलते सभी लोग स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने लगे थे। स्कूलों की पढ़ाईलिखाई का काम भी फोन पर होता थाक्योंकि हर कोई अपने बच्चे के लिए कंप्यूटर नहीं खरीद सकता था। लोग मास्क का इस्तेमाल कर रहे थेजिसकी वजह से स्पष्ट तौर पर आँखों में सूखेपन की समस्या अधिक बढ़ गई थी।

 सामान्य तौर पर आइबॉल यानी नेत्रगोलक की अक्षीय लंबाई में बढ़ोतरी की वजह से बहुत अधिक पावर (हाई मायोपियाकी समस्या उत्पन्न होती है। आमतौर पर यह एक वंशानुगत समस्या हैजो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती है। मोबाइल फोनटैबलेट जैसे गैजेट्स के बहुत अधिक इस्तेमाल की वजह से भी हाई मायोपिया हो सकता है। रिफ्रैक्टिव पावर वाले मरीजोंखासतौर पर बच्चों में ऐसी समस्याओं को नजरअंदाज करने या आँखों की समयसमय पर जाँच नहीं कराने से उन्हें बहुत अधिक पावर लगवाना पड़ सकता है। नियमित रूप से चश्मे का उपयोग नहीं करने से भी पावर में बढ़ोतरी हो सकती है।

 डॉनीता शाह आगे कहती हैं, “हाई रिफ्रैक्टिव की समस्या को फेकिक इम्प्लांटेबल लेंस (फेकिक आई..एल.) की मदद से ठीक किया जा सकता है। फेकिक आई..एलको मरीजों की आँखों के अनुसार कस्टमाइज किया जा सकता है। इसे देखने की क्षमता में सुधार होता है और इस तरह व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। फेकिक आई..एलमरीजों की आँखों के अनुसार कस्टमाइज होता है। यह पूरी तरह से दर्द रहित और बदलने योग्य प्रक्रिया हैजिसके लिए सिर्फ 5 मिनट की एक सामान्य सर्जरी की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया से मरीज जल्दी ठीक हो जाता है और उसके देखने की क्षमता में तुरंत सुधार होता है। इस प्रक्रिया के बाद दोबारा इलाज की जरूरत की दर 1% से कम हैतथा इसके लिए किसी भी तरह की विशेष सावधानी की जरूरत नहीं होती है और इससे आँखों पर किसी भी तरह का जोखिम नहीं होता है। यह मौजूदा दौर की सबसे पसंदीदा तकनीकों में से एक है। अगर मरीज की पावर काफी अधिक है और वह उपचार की LASIK, PRK, SMILE जैसी प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैतो उस स्थिति में यह प्रक्रिया सबसे सही है।

 हाई मायोपिया से पीड़ित व्यक्ति अगर अपने चश्मे से छुटकारा पाने के विकल्पों की तलाश में हैंतो वे रिफ्रैक्टिव की समस्या को ठीक करने के अलगअलग विकल्पों को समझने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं। इसके बादरिफ्रैक्टिव की समस्या को ठीक करने के लिए सबसे उपयुक्त प्रक्रिया और तकनीक के बारे में सुझाव प्राप्त करने के लिए किसी रिफ्रैक्टिव सर्जन से सलाह देना उचित होगा।फिर मरीज के इलाज के लिए सबसे सही प्रक्रिया को समझने के लिए आँखों की जाँच की जाती है तथा माप के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है।

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