इम्प्लांटेबल लेंस की मदद से इस बीमारी को आसानी से ठीक किया जा सकता है- डॉ. नीता शाह
मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] पिछले 5 सालों के दौरान किशोरों में गंभीर दृष्टिदोष की वजह से बहुत अधिक पावर वाले चश्मे लगवाने के मामलों में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है।मुंबई के चेंबूर स्थित डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल में क्लिनिकल सर्विसेज की प्रमुख, डॉ. नीता शाह ने इस आशय की जानकारी है। मुंबई के चेंबूर स्थित डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल में क्लिनिकल सर्विसेज की प्रमुख, डॉ. नीता शाह जानकारी देते हुए कहती हैं, “पिछले कुछ सालों में तरह तरह के गैजेट्स और इसी तरह की नजदीक की दूसरी चीजों को देखने की गतिविधियों में बढ़ोतरी, बाहरी गतिविधियों में कमी, और सही मात्रा में पोषण से संबंधित कारकों को ऐसे मामलों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जब कोविड अपने चरम पर था, तो उस दौरान युवाओं एवं बुजुर्गों दोनों के लिए बाहरी गतिविधियाँ प्रतिबंधित थी, जिसके चलते सभी लोग स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने लगे थे। स्कूलों की पढ़ाई–लिखाई का काम भी फोन पर होता था, क्योंकि हर कोई अपने बच्चे के लिए कंप्यूटर नहीं खरीद सकता था। लोग मास्क का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसकी वजह से स्पष्ट तौर पर आँखों में सूखेपन की समस्या अधिक बढ़ गई थी।“
सामान्य तौर पर आइबॉल यानी नेत्रगोलक की अक्षीय लंबाई में बढ़ोतरी की वजह से बहुत अधिक पावर (हाई मायोपिया) की समस्या उत्पन्न होती है। आमतौर पर यह एक वंशानुगत समस्या है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती है। मोबाइल फोन, टैबलेट जैसे गैजेट्स के बहुत अधिक इस्तेमाल की वजह से भी हाई मायोपिया हो सकता है। रिफ्रैक्टिव पावर वाले मरीजों, खासतौर पर बच्चों में ऐसी समस्याओं को नजरअंदाज करने या आँखों की समय–समय पर जाँच नहीं कराने से उन्हें बहुत अधिक पावर लगवाना पड़ सकता है। नियमित रूप से चश्मे का उपयोग नहीं करने से भी पावर में बढ़ोतरी हो सकती है।
डॉ. नीता शाह आगे कहती हैं, “हाई रिफ्रैक्टिव की समस्या को फेकिक इम्प्लांटेबल लेंस (फेकिक आई.ओ.एल.) की मदद से ठीक किया जा सकता है। फेकिक आई.ओ.एल. को मरीजों की आँखों के अनुसार कस्टमाइज किया जा सकता है। इसे देखने की क्षमता में सुधार होता है और इस तरह व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। फेकिक आई.ओ.एल. मरीजों की आँखों के अनुसार कस्टमाइज होता है। यह पूरी तरह से दर्द रहित और बदलने योग्य प्रक्रिया है, जिसके लिए सिर्फ 5 मिनट की एक सामान्य सर्जरी की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया से मरीज जल्दी ठीक हो जाता है और उसके देखने की क्षमता में तुरंत सुधार होता है। इस प्रक्रिया के बाद दोबारा इलाज की जरूरत की दर 1% से कम है, तथा इसके लिए किसी भी तरह की विशेष सावधानी की जरूरत नहीं होती है और इससे आँखों पर किसी भी तरह का जोखिम नहीं होता है। यह मौजूदा दौर की सबसे पसंदीदा तकनीकों में से एक है। अगर मरीज की पावर काफी अधिक है और वह उपचार की LASIK, PRK, SMILE जैसी प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उस स्थिति में यह प्रक्रिया सबसे सही है।”
हाई मायोपिया से पीड़ित व्यक्ति अगर अपने चश्मे से छुटकारा पाने के विकल्पों की तलाश में हैं, तो वे रिफ्रैक्टिव की समस्या को ठीक करने के अलग–अलग विकल्पों को समझने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं। इसके बाद, रिफ्रैक्टिव की समस्या को ठीक करने के लिए सबसे उपयुक्त प्रक्रिया और तकनीक के बारे में सुझाव प्राप्त करने के लिए किसी रिफ्रैक्टिव सर्जन से सलाह देना उचित होगा।फिर मरीज के इलाज के लिए सबसे सही प्रक्रिया को समझने के लिए आँखों की जाँच की जाती है तथा माप के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है।