मुंबई [ अमन न्यून नेटवर्क ] वोकहार्ड हॉस्पिटल्स की ओर से आज मधुमेह के कारण पैर काटनें की शक्यता को कम करने हेतु तथा ‘ग्रोथ फैक्टर कॉन्सन्ट्रेट थेरपी (जीएफसी) के माध्यम से उपचार करनेंवाले डाईबेटिक फूट अल्सर्स क्लिनिक (डीएफयू) की शुरूआत करनें की घोषणा की. यह एक अनोखी उपचार पध्दती है जहां मरीज के प्लेटलेट्स को निकालकर उन्हे और शुध्द करतें हुए उनकी मात्रा बढाकर गुणवत्ता और संख्या में बढ़ोत्तरी की जाती है. इस अत्याधुनिक उपचार पध्दती के कारण मधुमेह के चलतें मरीज का पैर काटनें को टाला जा सकता है और क्लिनिकल ट्रायल्स में भी यह पध्दती काफी यशस्वी हुई है.
भारत में दुनिया में सबसे अधिक मधुमेह के मरीज भारत में पाए जाते है और उनकी संख्या लगभग ७७ मिलियन है. डीएफयू पध्दती में मधुमेह से पिडीत मरीज के टखनें में स्थित जख्म की त्वचा में प्रवेश किया जाता है. अपनें जीवन में १२ से १५ प्रतिशत मधुमेह के मरीजों को डीएफयू के उपचार लेने पड़ते है. बढ़ती उम्र आणि बढ़ते मधुमेह के कारण अवयवों को निकालने और पैरों में छालें पड़नें की शक्यता बढ़ती है. डीएफयू के कारण शरीर के निचलें अवयवों को काटनें की शक्यता अधिक होती है और आधे से ज्यादा मरीज जिनके पैर काटे गए है उनकी पांच सालों में मृत्यू होती है.
डीएफयू क्लिनिक की शुरूआत के बारें में जानकारी देते हुए वोकहार्ड ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स (महाराष्ट्र) के सीईओ डॉ. पराग रिंदानी नें कहा “ अनोखे मल्टी स्पेशॅलिटी उपचारात्मक दृष्टिकोन का उपयोग अब डाईबेटिक फूट अल्सर में किया जा रहा है क्यों की इस में ग्रोथ फैक्टर कॉन्सन्ट्रेट के साथ कई प्रकार के उपचारों तथा तज्ञों की जरूरत होती है. एक ग्रुप की तरह यह टिम इकठ्ठा होकी डीएफयू पिडीत मरिजों के लिए उपचार ले आए है.”
वोकहार्ड हॉस्पिटल मुम्बई सेंट्रल के इंटर्नल मेडिसिन के संचालक डॉ. बेहराम पारडीवाला के अनुसार “ भारत में दुनिया के दुसरे नम्बर के सबसे अधिक मधुमेही है और हम सब जानते है की यह एक साईलेंट किलर है. मधुमेही लोगों के पैरों में घट्टे पड़ना, कॉलौस, खुदरी त्वचा जैसे लक्षण होते है तथा इस से अल्सर हो सकता है. ऐसे मरीजों ने तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए क्यों की इस से अल्सरेशन और गैंगरीन हो सकता है. हमारें संशोधकों की टिमने जीएफसी मरीजों पर यशस्वी तौर पर काम करतें हुए मधुमेह के कारण पैर काटनें से उन्हें बचाया है. हमनें आज तक हमारें पास आए लगभग ५० से ५२ मरिजों पर उपचार किए है जिन में स्टेज १ (पैरों को खतरा), स्टेज २ (पैरों में छाले), स्टेज ३ (क्रिपल्ड फूट), जख्म और छालों का समावेश है. हमारें बहुआयामी दृष्टिकोन के साथ जीएफसी के कारण हमें अच्छे परिणाम हासिल हुए है. इस उपचार पध्दती के कारण हमनें पैर काटनें से बचाया है, क्यों की मधुमेही मरीज के लिए यह सबसे दर्दनाक बात होती है.”
इस क्लनिक की शुरुआत के समय बोलते हुए वोकहार्ड हॉस्पिटल्स के रीजनरेटिव मेडिसिन के संचालक श्री.विजय शर्मा ने कहा “ मरीज की सेहत और जिंदगी की गुणवत्ता पर पुराने जख्मों का काफी असर होता है. इन के अलावा इसें कम आंकने के कारण परिवार की सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगता है.