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सिडबी और ग्रांट थॉर्नटन भारत द्वारा एमएसएमई  परितंत्र  के विकास पर राष्ट्रीय स्तर की ज्ञानशाला का आयोजन

मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] आजादी का अमृत महोत्सव समारोहों के साथ जुड़ते हुए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) ने ने अपनी परियोजना प्रबंध एजेंसी (पीएमयू) ग्रांट थॉर्नटन (जीटी) के सहयोग से शुक्रवार को एमएसएमई  पारितंत्र  के विकास पर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का वर्चुअल आयोजन किया। इसका उद्देश्य क्लस्टर केंद्रित विकास के लिए संरेखित अच्छी प्रथाओं को सीखना और साझा करना तथा इस प्रकार उसे अंगीकार करते हुए अपने को अधिकतम परिवर्तित करना था।

       कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सिडबी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री एस रमण ने कहा कि उद्यम विकास मॉडल में जीवंतता बनाए रखने की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि सिडबी ने क्लस्टर विकास को प्राथमिकता दी है, लेकिन केवल हितधारकों जो कि प्रमुख रूप से राज्य सरकारें हैं, उनके साथ समन्वय में ही सतत कार्यनीति विकसित की जा सकती है। उन्होने सभी हितधारकों से देश में एमएसएमई पारितंत्र के समग्र विकास के लिए एक साथ चलने का आह्वान किया।

           इससे पहले देश के  20 से अधिक राज्य सरकारों के प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, श्री वी सत्य वेंकट राव उप प्रबंध निदेशक ने राज्य सरकारों के सहयोग से उद्यम मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने में सिडबी की भूमिका के बारे में बताया। उन्होने सिडबी क्लस्टर विकास निधि योजना के बारे में भी प्रकाश डाला जो एमएसएमई क्लस्टर अवसंरचना के निर्माण के लिए राज्य सरकारों को सहायता प्रदान कर रही है। इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र के परामर्शदाता ग्रांट थॉर्नटन भारत के प्रो वी पद्मानंद ने पीएमयू (ग्रांट थॉर्नटन भारत) की तैनाती कर सिडबी द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों के साथ जुड़कर विकसित किये गए प्रमुख हस्तक्षेपों व उत्कृष्ट कार्यपद्धितियों के बारे में जानकारी दी। सम्मानित अतिथि, श्री डीके सिंह, आईएएस, महासचिव, एनएचआरसी ने एमएसएमई पारितंत्र में मौजूद कमियों और इसे दूर करने के साधनों और तरीकों पर चर्चा की।

         पैनल चर्चा में शामिल विषय एमएसएमई के लिए उपयुक्त ऋण उत्पाद-समूह; आधारभूत  अवसंरचना /सिडबी क्लस्टर विकास निधि-एससीडीएफ के लिए राज्य /भारत सरकार की योजनाओं का सम्मिलन; एमएसएमई पारितंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए नीतियां और योजनाएं, सेवा प्रदाताओं का अभिग्रहण;  राज्य स्तरीय लाइन विभागों और उद्योग संघों के डिजिटलीकरण और संस्थागत क्षमता निर्माण के माध्यम से सशक्तिकरण (क्लस्टर विकास, भारत सरकार की योजनाओं के साथ जुड़ाव, प्रौद्योगिकी व्यवसाय विकास सेवाएं) आदि रहे।

        कुछ राज्य मिनी क्लस्टर विकास योजनाओं पर बल दे रहे हैं, जिससे सूक्ष्म और ग्रामीण उद्यमों को बढ़ावा मिल रहा है। कतिपय राज्यों ने राज्य स्तरीय ऋण गारंटी निधि विकसित की है। डिजिटलीकरण पर आधारित सत्रों में इस आशय की पुष्टि हुई कि इससे एक व्यापक औद्योगिक अनकूलता का सृजन हुआ है और इसके माध्यम से ऋण तथा गैर वित्तीय सेवाओं की पहुंच को और भी अधिक सघन बनाया जा सकता है। राज्य असेवित /अविकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जहां एससीडीएफ जैसी योजनाएं एमएसई-सीडीपी की पूरक हैं और अन्य भारत सरकार की पीपीपी आधारित योजनाएं अमूल्य समर्थन से लाभदायक साबित हो सकती हैं। संक्षेप में, आने वाले समय में समूहों के माध्यम से सहयोजन और संपर्क एवं समेकन प्रमुखता से अस्तित्व में बने रहेंगे। इसे राज्य स्तरीय मूल्य श्रृंखला के रूप में कार्यरत संस्थाओं के क्षमता निर्माण की प्रक्रिया में एक ऐसा महत्वपूर्ण लिंक माना जाता है, जो पहले उपलब्ध नहीं था । एमएसएमई के लिए उपलब्ध राज्य, केंद्रीय और संस्थागत लाभों के प्रभावी वितरण के लिए सभी हितधारकों की

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