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ठाणे स्मार्ट सिटी की महत्वपूर्ण परियोजनाएं पांच वर्ष के बाद भी अधूरी – महिन्द्रकर

ठाणे [ युनिस खान  ] शहर के विकास के लिए प्रशासन के प्रयासों से ठाणे शहर को स्मार्ट सिटी में शामिल किया गया है। प्रशासन की उदासीनता के चलते स्मार्ट सिटी का सपना अधूरा रह जाने की संभावना है। स्मार्ट सिटी के तहत 387 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। स्मार्ट सिटी के तहत शहर का सीसीटीवी और मुफ्त वाईफाई इंटरनेट सेवा परियोजना पिछले पांच वर्षों में केवल 48 प्रतिशत ही पूरी हुई है।  चौंकाने वाली बात यह है कि इस प्रोजेक्ट की वाईफाई सेवा के साथ-साथ कई जगहों के सीसीटीवी भी बंद कर दिए गए हैं। इस स्मार्ट सिटी के तहत परियोजनाएं पांच साल बाद भी रुकी हुई हैं।

            ठाणे स्मार्ट सिटी में कुल 39 परियोजनाएं हैं।  इसमें न्यू सबर्बन रेलवे स्टेशन जैसी परियोजनाएं अधिक महत्वपूर्ण हैं। जिनमें से करीब 262.76 करोड़ परियोजनाएं अभी भी कागजों पर हैं।  देखा जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट का काम महज 3 फीसदी हुआ है।  हालांकि इस परियोजना के 24 महीने की अवधि के भीतर पूरा होने की शर्त है, लेकिन यह पांच साल बाद भी अधूरा है।  एक अन्य महत्वपूर्ण परियोजना मल्टी मॉडल ट्रांजिट हब के लिए 260.85 करोड़ रुपये है, जो 45 प्रतिशत पूर्ण है।  प्रोजेक्ट को 36 महीने में पूरा करने का नियम था।  लेकिन एक बार फिर रेखांकित किया जा रहा है कि ठेकेदार मनमाने ढंग से अपना काम कर रहा है और प्रशासन भी उसका साथ दे रहा है।
मनपा द्वारा दी गई अवधि पूरा होने के बावजूद यह देखा जा रहा है कि मनपा इस मुद्दे पर करोड़ों रुपये खर्च कर कोई कार्रवाई करने की कोशिश नहीं कर रहा है। मनसे के जनहित और कानून विभाग के शहर अध्यक्ष स्वप्निल महिंद्रकर ने आरोप लगाया है कि परियोजना में भ्रष्टाचार व्याप्त है।  हालांकि स्मार्ट सिटी के तहत कुछ छोटे प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं, लेकिन इसका रख-रखाव ठीक से नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा है कि एक प्रोजेक्ट जो पिछले पांच सालों में पूरा नहीं हुआ है, वह है इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम।  यह प्रोजेक्ट अधूरा है और इसमें बड़ी संख्या में त्रुटियां हैं।  हालांकि, यह पता चला है कि झूठी सूचना के आधार पर मनपा प्रशासन को परियोजना की दक्षता के लिए एक पुरस्कार भी मिला है। ठाणे स्मार्ट सिटी के तहत कार्यान्वित परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण अधिकांश परियोजनाओं के कार्यावधि पूरा होने के बाद भी प्रशासन संबंधित संस्थानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता है और उन पर कोई जुर्माना नहीं लगाता है।

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