हर साल दीपावली के दौरान अस्पतालों में पटाखों से होने वाली चोटों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी देखी जाती है।
इन चोटों के लिए अधिकांश कारण होते हैं पटाखे जलाने के लिए सुरक्षा को लेकर जागरुकता की कमी और आँखों के लिए संरक्षी उपकरण/सामग्री का उपयोग न करना।
मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] दुनियाभर में त्यौहारों के दौरान उत्सव और आनंद को व्यक्त करने के लिए आतिशबाजी का इस्तेमाल किया जाता है और भारत में विशेष रुप से यह देखने को मिलती है दीपावली के दौरान। लेकिन यदि आतिशबाजी किसी वयस्क की निगरानी या मार्गदर्शन में न की जाए तो इससे त्वचा और आंखों को चोट पहुँच सकती है। आंखों की इन चोटों से दृष्टि को गंभीर और अपूरणीय क्षति हो सकती है। हर साल दीपावली त्यौहार के दौरान अस्पतालों में पटाखों से होने वाली चोटों के मामलों में कई गुना बढ़ोतरी देखी जाती है। इन चोटों के लिए अधिकांश कारण होते हैं पटाखे जलाने के लिए सुरक्षा को लेकर जागरुकता की कमी और आँखों के लिए संरक्षी उपकरण/सामग्री का उपयोग न करना। दीपावली के दौरान सबसे ज़्यादा चोटों से प्रभावित होने वाले वे बच्चे होते हैं जो किसी ज़िम्मेदार वयस्क की देखरेख में नहीं होते। प्रो डॉ एस नटराजन, प्रमुख, व्हिट्रिओ रेटीनल सर्विसेस, डॉ. अगरवाल ग्रुप ऑफ आय हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, “बड़ी संख्या में आँखों को होनेवाली चोटों के लिए आतिशबाजी से होने वाली चोटें ज़िम्मेदार होती हैं। सामान्य तौर पर मरीज़ आगंतुक शल्य संवेदना, आँखों में दर्द, दृष्टि में कमी, आंखें लाल होना और फोटोसेंसिटिविटी (प्रकाशसुग्राहिता) या फोटोफोबिया की शिकायत करते हैं। सबसे सामान्य चोटों में शामिल है हायफेमा(खून आना), पलकों की चोटें, वेदनादायी इरिडोडाएलिसिस(पुतली की चोट),दृष्टिपटल वियोजन(पर्दा फटना) और कॉर्निया खरोंच।”
डॉ एस नटराजन ने आगे जोड़ते हुए कहा, “इसके अलावा आतिशबाजी से पलकों और नेत्र सतह के केमिकल से एवं जलने से चोट भी हो सकती है। इसके परिणामस्वरुप कोर्नियल ओपेसिटी और नेत्रहीनता की स्थिति बन सकती है। कभी कभी प्रक्षेपी चोट के कारण यह ग्लोब परफोरेशन (गोलक छिद्रण) और आंखों में इंट्रा ऑक्यूलर फोरेन बॉडी का कारण भी बनता है।इसलिए इस दीपावली में यह महत्वपूर्ण है कि पटाखे फोड़ते समय हर कोई आंखों के संरक्षी उपकरण/सामग्री का उपयोग करें और बच्चों को किसी भी हाल में आतिशबाजी करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, और यदि करनी ही हो, तो उन्हें माता पिता की सख्त निगरानी में ही ऐसा करना चाहिए।डॉ एस नटराजन, डॉ. अगरवाल ग्रुप ऑफ आय हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, “बेहतर होगा कि आतिशबाजी घरों, सूखे पत्तों या घास या अन्य ज्वलनशील सामग्री से दूर एक साफ क्षेत्र में की जाए। आपातकालीन स्थिति के लिए और ऐसे पटाखे जो जल नहीं पाते या जिनका स्फोट नहीं होता उस पर डालने के लिए आपको हमेशा एक बाल्टी पानी पास में रखना चाहिए। कभी भी किसी बर्तन में, विशेष रुप से कांच या धातू के बर्तन में पटाखे नहीं फोड़ना चाहिए और कभी भी जो पटाखे ठीक से न फूटें हों, उन्हें फिर से जलाने या हाथ में नहीं लेना चाहिए। उन्हें सीधे पानी में भिगो देना चाहिए और सुरक्षित रुप से इनका निपटान करना चाहिए। यहाँ तक कि देखने वालों को भी खतरा हो सकता है, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि सुरक्षा सूचनाओं का पालन करें और 500 फीट की दूरी से आतिशबाजी देखें।” इतना ही नहीं रॉकेट और बम जैसे प्रक्षेपी आतिशबाजी से सख्ती से दूर रहना चाहिए, जो अधिकांश चोटों के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। यहाँ तक की फुलझड़ी जैसी हानिरहित आतिशबाजी भी खतरनाक हो सकती है क्योंकि वे 1093 डिग्री सेल्सियस पर जलती हैं, और इसलिए फुलझड़ी से होने वाली दुर्घटनाओं से आंखों की गंभीर चोटें और यहाँ तक की मौत भी हो सकती है।
आतिशबाजी से होनेवाली चोटों के मामले में बरती जानेवाली सावधानियाँ: डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी आय ड्रॉप्स का उपयोग न करें और आपकी आंखों को न रगड़ें।