ठाणे [ युनिस खान ] ओबीसी समाज के आरक्षण की मांग को लेकर ओबीसी जनमोर्चाकी ओर से जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन कर राज्य सरकार पर उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। मोर्चा के उपाध्यक्ष दशरथ पाटील ने कहा कि अदालत के आदेश के अनुसार इम्पिरिकल डेटा एकत्र करने के लिए 3 माह का समय दिया है। यदि चुनाव आगे नहीं बढाया गया तो स्थानीय निकायों में ओबीसी समाज को आरक्षण से वंचित रहना पड़ेगा।
ओबीसी जनमोर्चा के उपाध्यक्ष दशरथदादा पाटिल के साथ कई पदाधिकारी व कार्यकर्ता और आंदोलन में शामिल थे। उन्होंने अपनी मांगों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए ठाणे जिलाधिकारी को एक ज्ञापन दिया है। जिलाधिकारी को दिए अपने ज्ञापन के माध्यम से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, ओबीसी कैबिनेट उप समिति के अध्यक्ष छगन भुजबल और ओबीसी कल्याण मंत्री विजय वडेट्टीवार को भेजने का अनुरोध किया है।
ओबीसी जनमोर्चा के उपाध्यक्ष दशरथदादा पाटिल के साथ कई पदाधिकारी व कार्यकर्ता और आंदोलन में शामिल थे। उन्होंने अपनी मांगों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए ठाणे जिलाधिकारी को एक ज्ञापन दिया है। जिलाधिकारी को दिए अपने ज्ञापन के माध्यम से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, ओबीसी कैबिनेट उप समिति के अध्यक्ष छगन भुजबल और ओबीसी कल्याण मंत्री विजय वडेट्टीवार को भेजने का अनुरोध किया है।
स्थानीय निकायों में ओबीसी के आरक्षण को बचाने के लिए ओबीसी को वर्तमान सरकार से न्याय मिलने की उम्मीद थी। लेकिन महाविकास अघाड़ी सरकार भी ओबीसी के निलंबित आरक्षण को नहीं बचा पाई है। बयान में कहा गया है कि राज्य सरकार को नवंबर 2019 से पहले जिला परिषद चुनाव कराने की अनुमति दी गई थी। ओबीसी समुदाय में नाराजगी की भावना है कि कोई भी सरकार ओबीसी आरक्षण के बारे में गंभीर नहीं थी। उस समय राज्य सरकार को 2010 में के. कृष्णमूर्ति मामले के आदेश के बाद इम्पीरिकल डेटा एकत्र करने के लिए एक समर्पित आयोग नियुक्त करना आवश्यक था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने तारीखों पर तारीख लेने के अलावा कुछ नहीं किया है।
राज्य सरकार ने अध्यादेश को हटाकर ओबीसी आरक्षण को बचाने का एक अस्थायी प्रयास किया, लेकिन अध्यादेश अपेक्षित समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। राज्य चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार 21 दिसंबर को 105 नगर पंचायत चुनाव हैं। वे चुनाव भी बिना ओबीसी आरक्षण के कोर्ट के आदेश के अनुसार कराए जाएंगे। कई मनपा और जिला परिषद पंचायत समितियों का कार्यकाल फरवरी 2022 में समाप्त हो रहा है। 15 दिसंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्य को इम्पीरिकल डेटा एकत्र करने के लिए तीन महीने का समय दिया। यदि चुनाव स्थगित नहीं किया गया तो जिला परिषद, पंचायत समिति, मनपा और नगर पालिका चुनाव में ओबीसी को फिर से आरक्षण से वंचित होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार को हमारे आंदोलन पर ध्यान देना चाहिए और ओबीसी के उत्पीड़न को रोकना चाहिए, अन्यथा राज्य सरकार को ओर से होने वाले अन्याय का घड़ा कब फूट जाएगा यह कहना मुश्किल है।
राज्य सरकार ने अध्यादेश को हटाकर ओबीसी आरक्षण को बचाने का एक अस्थायी प्रयास किया, लेकिन अध्यादेश अपेक्षित समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। राज्य चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार 21 दिसंबर को 105 नगर पंचायत चुनाव हैं। वे चुनाव भी बिना ओबीसी आरक्षण के कोर्ट के आदेश के अनुसार कराए जाएंगे। कई मनपा और जिला परिषद पंचायत समितियों का कार्यकाल फरवरी 2022 में समाप्त हो रहा है। 15 दिसंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्य को इम्पीरिकल डेटा एकत्र करने के लिए तीन महीने का समय दिया। यदि चुनाव स्थगित नहीं किया गया तो जिला परिषद, पंचायत समिति, मनपा और नगर पालिका चुनाव में ओबीसी को फिर से आरक्षण से वंचित होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार को हमारे आंदोलन पर ध्यान देना चाहिए और ओबीसी के उत्पीड़न को रोकना चाहिए, अन्यथा राज्य सरकार को ओर से होने वाले अन्याय का घड़ा कब फूट जाएगा यह कहना मुश्किल है।