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 थैलेसीमिया को शारीरिक अक्षमता माना जाता है और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से इसका इलाज संभव 

मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] थैलेसीमिया रक्त से संबंधित एक बीमारी है, जो प्रोटीन हीमोग्लोबिन में वंशानुगत गड़बड़ी की वजह से होती है और इससे रक्त में ऑक्सीजन के परिवहन की क्षमता कम हो जाती है। भारत में हर साल 10,000 से ज्यादा बच्चे इसी बीमारी के साथ पैदा होते हैं। थैलेसीमिया बीमारी शरीर को असक्षम बना देती है, क्योंकि इससे मरीज को गंभीर एनीमिया हो जाता है और इसके लिए नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ़्यूजन की जरूरत होती है। यह शरीर को असक्षम बनाने वाले दूसरे रोगों से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें शरीर के अंगों को नुक़सान, हड्डियों को नुक़सान और दिल से संबंधित जटिलताएँ शामिल हैं, जिसकी वजह से मरीज को सामान्य ज़िंदगी जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मरीज के रिश्तेदार या उसके ताल्लुक नहीं रखने वाले डोनर के मैचिंग ब्लड स्टेम सेल के ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) की मदद से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिए थैलेसीमिया का इलाज किया जा सकता है।

        डॉ. शांतनु सेन, कन्सल्टेंट, पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी एवं स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई, ने जानकारी देते हुए बताया कि, “भारत में थैलेसीमिया के मामलों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि, यह बीमारी काफी बड़े पैमाने पर मौजूद है और इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। थैलेसीमिया के मरीजों के लिए स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र इलाज है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सफलता बिल्कुल सही HLA टिश्यू की मैचिंग पर निर्भर है। भारतीय मूल के मरीजों और दाताओं के HLA की विशेषताएँ बिल्कुल अलग होती हैं और ग्लोबल डाटा बेस में ऐसी विशेषताओं वाले HLA की काफी कमी है, जिससे उपयुक्त डोनर मिलने की संभावना और भी मुश्किल हो जाती है। भारतीय मरीजों के लिए मुख्य रूप से भारतीय टिश्यू मैच की जरूरत होती है। इसी वजह से लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना और संभावित स्टेम सेल डोनर के रूप में पंजीकरण करने के लिए भारत में ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है।” 

       दिसंबर 2016 में भारत की संसद द्वारा दिव्यांगजन अधिकार विधेयक पारित किया गया, जिसके बाद भारत सरकार ने थैलेसीमिया और रक्तसे संबंधित बेहद असामान्य लोगों को शारीरिक अक्षमता के रूप में मान्यता दी।  इस मौके पर पैट्रिक पॉल, सीईओ, DKMS BMST फाउंडेशन इंडिया, ने कहा, “थैलेसीमिया के मरीजों की मदद करने में DKMS-BMST हमेशा सबसे आगे रहा है, और हम संभावित दाताओं के अपने ग्लोबल डेटाबेस के जरिए मरीज के परिवार के सदस्यों या उससे कोई संबंध नहीं रखने वाले लोगों में से मैचिंग डोनर की तलाश में उनकी सहायता करते हैं। इस नेक काम में लोगों की मदद के लिए, DKMS की ओर से DKMS-BMST थैलेसीमिया कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इस कार्यक्रम के तहत, DKMS-BMST ने गैर-सरकारी संगठनों और ट्रांसप्लांटेशन क्लीनिकों के साथ साझेदारी की है, जिन के सहयोग से थैलेसीमिया शिविर आयोजित किए जाते हैं। इन शिविरों के दौरान, पीडियाट्रिक थैलेसीमिया के मरीज और उनके परिवार के सदस्य HLA टाइपिंग के लिए ब्यूकल स्वैब के नमूने देते हैं। इसके बाद स्वैब के नमूनों को जर्मनी में स्थित DKMS की प्रयोगशाला में भेजा जाता है और क्लिनिकल मैचिंग रिपोर्ट प्रदान की जाती है। अगर मरीज के परिवार में कोई मैचिंग स्टेम सेल डोनर नहीं होता है, तो उस स्थिति में भी DKMS अपने अंतर्राष्ट्रीय स्टेम सेल डोनर डेटा-बेस में असंबंधित डोनर ढूंढकर मरीजों की मदद करता है। अब तक DKMS-BMST ने 18 भागीदारों के साथ समझौता किया है, जिसमें भारत में 11 ट्रांसप्लांट केंद्र, 1 डोनर पंजीकरण केंद्र और 6 गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं।

          2022 में DKMS-BMST और थैलेसीमिया कार्यक्रम में इसके सहयोगियों ने कर्नाटक, बिहार, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, गोवा और दिल्ली के साथ-साथ बांग्लादेश एवं श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में थैलेसीमिया शिविरों का आयोजन किया। इन शिविरों में मरीजों तथा उनके परिवारों से स्वैब के 4000 से अधिक नमूने एकत्र किए और उनके प्रयासों से थैलेसीमिया के 1288  मरीजों को लाभ मिला है। पैट्रिक ने आगे बताया, “ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को सफल बनाने के लिए मरीज तथा डोनर के ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) का मिलान बेहद जरूरी है। लेकिन भारत में, केवल 30% मरीजों को ही अपने परिवार के भीतर मैचिंग डोनर मिल पाता है और बाकी 70% मरीज असंबंधित डोनर पर निर्भर होते हैं। हालाँकि, जागरूकता की कमी और स्टेम सेल डोनेशन की प्रक्रिया के बारे में लोगों के बीच फैली गलतफहमी की वजह से पूरी दुनिया में सूचीबद्ध किए गए कुल असंबंधित दाताओं में भारतीयों की हिस्सेदारी केवल 0.04% है।

      संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस घोषित किया गया है, जिसका उद्देश्य शारीरिक अक्षमता से जुड़े विभिन्न मुद्दों के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाने के साथ-साथ दिव्यांग लोगों के आत्मसम्मान, अधिकारों और उनकी भलाई के लिए समर्थन जुटाना है। थैलेसीमिया भी एक शारीरिक अक्षमता है जिसे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से ठीक किया जा सकता है, लेकिन किसी मरीज के लिए मैचिंग डोनर मिलने की संभावना दस लाख में केवल 1 होती है, साथ ही भारतीय मरीजों के लिए मुख्य रूप से भारतीय टिश्यू मैच की जरूरत होती है। ब्लड स्टेम सेल डोनेशन की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है, और भारतीय युवाओं को ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में आगे आकर संभावित डोनर के रूप में पंजीकरण कराने की आवश्यकता है। संभावित ब्लड स्टेम सेल डोनर के रूप में अपना पंजीकरण कराने के लिए, कृपया www.dkms-bmst.org/register पर जाएँ।

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