मुंबई [ युनिस खान ] टीकों का निर्माण, परीक्षण, उन्हें उपयोग के लिए जारी किए जाने और उनका वितरण किए जाने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और बहुआयामी होती है। यह प्रक्रिया सैकड़ों चरणों से गुजरती हुई पूरी होती है। इसके लिए विभिन्न विशेषज्ञताओं में प्रशक्षित काफी अधिक विशेषज्ञों एवं कर्मियों की जरूरत होती है। लोगों तक टीके का वास्तविक लाभ पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला, निर्माताओं, नियामकों और राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की एजेंसियों के बीच अत्यधिक समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होती है।
टीकों के उत्पादन को बढाने की प्रक्रिया चरण-दर-चरण प्रक्रिया है, जिसमें जीएमपी (बेहतर विनिर्माण प्रथाओं की मानक संचालन प्रक्रिया) के कई के एसओपी नियामक शामिल होते हैं। कोवैक्सिन को वास्तविक टीकाकरण में बदलने के लिए चार महीने का अंतराल होता है।
कोवैक्सिन के किसी एक बैच के निर्माण, उनके परीक्षण और उपयोग के लिए जारी किए जाने की समय-सीमा लगभग 120 दिन की होती है और यह प्रौद्योगिकी ढांचे और नियामक संबंधी दिशानिर्देशों पर निर्भर करता है। इस प्रकार, कोवैक्सिन के इस बैच के उत्पादन की प्रक्रिया जो इस वर्ष मार्च के दौरान शुरू की गई थी वे टीके जून के महीने में आपूर्ति के लिए तैयार होंगे।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के दिशानिर्देशों के अनुसार, कानून के तहत भारत में जिन टीकों की आपूर्ति की जानी है उन सभी को परीक्षण एवं रिलीज के लिए भारत सरकार की केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला को जारी करना अनिवार्य होता है। राज्य और केंद्र सरकारों को आपूर्ति की जाने वाली टीकों के सभी बैच भारत सरकार से प्राप्त आवंटन ढांचे पर आधारित हैं।
भारत बायोटेक के केन्द्रों से राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के डिपो तक वैक्सीन को पहुंचाने में करीब दो दिन का समय लगता है। इन सभी डिपो पर पहुंचाये जाने वाली सभी टीकों को विभिन्न राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों के विभिन्न जिलों में वितरित करती हैं। इसमें और कई दिन लगते हैं। वैश्विक महामारी की रोकथाम वाले टीकों को संबंधित संरकारें आबादी के सभी हिस्सों तक समान रूप से वितरित करती हैं। जब टीके टीकाकरण केंद्रों पर उपलब्ध हो जाते हैं तब मांग के आधार पर खास समय सीमा के भीतर लोगों को लगाए जाते हैं।