भिवंडी [ युनिस खान ] मानसरोवर परिसर से सटी पहाड़ी के नीचे निर्माणाधीन एसटीपी प्लांट को हजारों रहिवासियों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक बताते हुए किसी अन्य जगह स्थानांतरित काने की मांग की गयी है। मानसरोवर-फुलेनगर संघर्ष समिति नें मुख्यमंत्री,ठाणे पालक मंत्री, जिलाधिकारी, मनपा आयुक्त को लिखित पत्र देकर विरोध दर्ज कराया है।
स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़े अहम मुद्दे को लेकर मल निःसारण प्रकल्प के विरोध में मानसरोवर वासियों नें हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है जिसे शासन को सौंपा जाएगा। शहर के पाश रहिवासी क्षेत्र मानसरोवर-फुलेनगर स्थित पहाड़ी के नीचे भूभाग पर भिवंडी मनपा द्वारा 2015 में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण किये जाने की मंजूरी तत्कालीन महासभा ने दी थी। प्रस्ताव के अनुसार शहर में ड्रेनेज डालने वाली मे.ईगल इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को ठेका दिया गया। मानसरोवर रहिवासी क्षेत्र में एसटीपी प्लांट निर्माण की खबर मिलते ही स्थानीय नागरिकों द्वारा एकजुट होकर भारी विरोध दर्शाया गया था। मानसरोवर वासियों नें मनपा चुनाव व लोकसभा चुनाव के दौरान उक्त मुद्दे को उठाते हुए जनप्रतिनिधियों से एसटीपी प्लांट को अन्यत्र स्थानांतरित किये जाने की बारंबार मांग उठाई। मतदान के बहिष्कार की चेतावनी भी दी थी। आम चुनाव के दौरान ठाणे जिला पालक मंत्री,नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे,भाजपा सांसद कपिल पाटिल,शिवसेना विधायक रूपेश म्हात्रे आदि शीर्ष नेताओं ने उक्त मुद्दे पर सकारात्मक सहमती दिखाते हुए वोट लेने के खातिर मानसरोवर परिसर में एसटीपी प्लांट निर्माण नहीं किये जाने का भरोसा दिया था।
स्थानीय भाजपा नगर सेवक श्याम अग्रवाल ने उक्त संदर्भ में बताया कि मेरे नगर सेवक होने के पूर्व 2015 में एसटीपी प्लांट की मंजूरी मनपा द्वारा दी गई थी। एसटीपी प्लांट की मंजूरी मिलने के उपरांत भी स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर विरोध दर्ज कराया था। 2019 में तत्कालीन मनपा आयुक्त मनोहर हिरे ने एसटीपी प्लांट को अन्यत्र ट्रांसफर किए जाने हेतु अधिकारियों से अन्य पर्यायी जगह तलाश किये जाने का आदेश दिया था लेकिन अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। एसटीपी प्लांट निर्माण होने से गंदगी,प्रदूषण बढ़ेगा जिससे मानसरोवर सहित आसपास रहने वाले हजारों लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। क्षेत्रीय भाजपा नगर सेवक अग्रवाल ने कहा कि अगर शासन एवं मनपा प्रशासन एसटीपी प्लांट अन्यत्र ट्रांसफर नहीं किया तो स्वास्थ्य सुरक्षा के मुद्दे को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।