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मायोपिया से पीड़ित लोगों में ग्लूकोमा होने का ख़तरा तीन गुना अधिक 

मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] मध्यम से उच्च मायोपिया वाले लोगों को जीवन में आगे चलकर ग्लूकोमा के विकसित होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है, जिसका खतरा आंख की स्थिति की गंभीरता के साथ सीधे संबंधित है। इस बात को मुंबई में चल रहे ग्लूकोमा जागरूकता माह के दौरान डॉ.अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बताया।
        मायोपिया और ग्लौकोमा के बीच संबंध को समझाते हुए, डॉ. निधि ज्योति शेट्टी, ग्लौकोमा सलाहकार, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल, मुंबई, ने कहा: मायोपिक आंखों में ऑप्टिक नर्व हेड ,कनेक्ट करने वाले टिश्यू की संरचना में परिवर्तन के कारण, ग्लौकोमा के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है। बढ़े हुए जोखिम का संबंध भी मायोपिक आंखों में रेटिनल नर्व परत की मोटाई में कमी से हो सकता है। एक मान्य अध्यय ने  प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा (पीओएजी) और मायोपिया के बीच एक मजबूत संबंध की पुष्टि की है, जिसमें कम मायोपिया वाली आंखों में 2.3 और मध्यम से उच्च मायोपिया वाली आंखों में 3.3 का अंतर अनुपात पाया गया। मायोपिक ग्लूकोमा को बीमारी की शुरुआत और सेंट्रल विज़न डिफेक्ट के शुरुआती विकास के साथ देखा सकता है।”
        ग्लूकोमा के लिए मुख्य जोखिम कारकों में से एक आंख का दबाव है। आंख के ड्रेनेज सिस्टम में अव्यवस्था के कारण द्रव इकट्ठा होने से अत्यधिक दबाव पैदा हो सकता है, जिससे ऑप्टिक नर्व को क्षति होती है और दृष्टिहीनता भी हो सकती है। भारतीय लोगों में ग्लूकोमा का अनुमानित प्रसार 2.7-4.3% के बीच है। यह 1.2 मिलियन लोगों में अंधेपन के लिए जिम्मेदार है, और ये कुल अंधेपन का 5.5% है, जिससें यह भारत में अपरिवर्तनीय अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक है। वहीं दूसरी ओर, देश में 5 से 15 साल के शहरी बच्चों में मायोपिया की व्यापकता 1999 में 4.4% से बढ़कर 2019 में 21.1% हो गई है। खासकर बच्चों और कामकाजी आबादी के बीच 2030 में इसका प्रसार 31.8%, 2040 में 40% और 2050 में 48.1% तक बढ़ने की संभावना है।
ग्लूकोमा और मायोपिया के प्रति कई सावधानियां लेने की जरुरत हैं। डॉ. निधि ज्योति शेट्टी ने कहा: “मायोपिया से पीड़ित लोग अपने डॉक्टर द्वारा बताए गए स्वस्थ जीवनशैली, खासकर आहार और व्यायाम को बनाए रखकर ग्लूकोमा होने की संभावना से बच सकते हैं या कम कर सकते हैं। यदि शुरुआती अवस्था में इसका पता चल जाता है, तो बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए नियमित फॉलो-उप और स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहिए।”

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