ठाणे [ युनिस खान ] एड बी एल शर्मा राजस्थान के चूरू में 3 फरवरी 1958 में एक सामान्य मध्यम वर्गीय ब्राह्मण संयुक्त परिवार में जन्म लिए। पैसठ वर्ष की आयु में उन्होंने 4 फरवरी 2023 को अंतिम सांस ली और हमेशा के लिए संसार छोड़कर चले गए। वे भले ही आज हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन उनके कार्य और यादें हमेशा बनी रहेंगी। वकालत करने के साथ ही सामाजिक व साहित्यिक कार्यो में उनकी रूचि होने के चलते उन्होंने विविध क्षेत्रों में अतुलनीय कार्य किए। उनके यही कार्य आज हम सबके लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं।
उन्होंने हिंदी भाषी एकता परिषद , गौड़ ब्राम्हण संस्था एवं ब्रम्ह फाउंडेशन की स्थापना किया आज भी इस संस्थाओं के संस्थापक अध्यक्ष हैं। एड बी एल शर्मा ने 28 फरवरी 2023 को 29 वां राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का सफल आयोजन किया। 29 वर्षों तक ठाणे में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन कर उसे उंचाईयों पर पहुँचाने का कार्य किया। उनकी ही प्रेरणा से 27 जनवरी 2024 को 30 वां राष्ट्रीय कवि सम्मेलन संपन्न हुआ। हिन्दी भाषा के प्रचार प्रचार के लिए हिन्दी दिवस का आयोजन कर विद्यार्थियों की प्रतियोगिता का आयोजन करते थे। भगवान परशुराम जयंती का आयोजन, युवक ,युवती परिचय ,सामूहिक विवाह जैसे अनेक कार्य किये। कुछ लोगों ने उनसे सीखकर सफलता प्राप्त की है।
एड बी एल शर्मा भगवान परशुराम के आदर्शों को आत्मसात कर एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अन्याय के खिलाफ आजीवन लड़ते रहे हैं। भले ही आज वे हमारे बीच व्यक्ति के रूप में मौजूद नहीं है , उनकी आत्मा आज भी हम सबके बीच मौजूद है। इसका हम सभी अहसास कर रहे है। उनके जीवन की कार्य पद्धति , व्योहार और विविध क्षेत्रों में किए कार्य हमेशा प्रेरणादाई बने रहेंगे। एड . शर्मा एक सामान्य इंसान नहीं असामान्य व्यक्ति थे। उनके जीवन और व्योहार में भगवान परशुराम की झलक दिखाई देती थी जिसका आज भी हम सब अहसास कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि उन्होंने सिर्फ अपना शरीर छोड़ा और अजर अमर हो गए हैं। एक वकील के साथ साथ उन्होंने हिंदी भाषी एकता परिषद , राजस्थानी सेवा समिति , गौड़ ब्राम्हण संस्था और ब्रह्म फाउंडेशन के माध्यम से जो कार्य किए वे हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए हमेशा प्रेरणादायक बने रहेंगे। इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि उनके जीवन और कार्यों का स्मरण कराते रहें। उनमें लोगों को साथ लेकर चलने की अद्भुत कला थी। वे एक अजातशत्रु थे जिनका कोई दुश्मन नहीं था। यदि उन्हें कोई बात सही नहीं लगती तो उसका तुरंत विरोध कर देते ,बाद में मुस्कुरा कर समझाते थे। वे किसी भी कार्य के लिए खुद निर्णय लेते थे लेकिन कोई भी कार्य करने से पहले सलाह भी लेते थे। उनके यही गुण बताते है कि वह सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि भगवान परशुराम के एक अंश के रूप में हमारे बीच रहे और एक आदर्श छोड़कर चले गए। उनकी अनुपस्थित में उनकी जीवन पद्धति और कार्य हमें प्रेरणा देते रहेंगे।