दिल्ली [ युनिस खान ] आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। वे 1947 से 1958 तक देश के शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने देश के उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा को शिक्षित होने की पहली प्राथमिकता माना था। वे करीब 11 वर्षों तक देश के शिक्षा मंत्री के पद पर रहे। उन्हें ही देश में आईआईटी यानी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना भी की। इसके अलावा उन्हें शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना करने का भी श्रेय दिया जाता है।
मौलाना आजाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी , एक कवि, लेखक और पत्रकार के तौर अपनी धाक रखते थे। अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन के नाम से भी जाने जाते हैं। उनका संबंध उन अफगानी उलेमाओं के खानदान से था जो कभी बाबर के समय में भारत आए थे। उनकी मां भी अरबी मूल की ही थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन फारसी थे। जिस वक्त भारत में 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई थी तब उनके पिता सब कुछ छोड़छाड़ कर मक्का चले गए थे। वहां पर उन्होंने शादी रचाई और फिर 23 वर्ष बाद 1890 में वापस कलकत्ता लौट आये। यहां पर उन्हें मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली। आजाद ने बेहद कम उम्र में ही अपनी मां को खो दिया था। उनकी शिक्षा इस्लामिक तौर तरीके से हुई जिसको पहले उनके पिता और फिर दूसरे मजहबी विद्वानों ने अंजाम दिया। उन्हें पढ़ाई में विशेष रूचि थी इसलिए वो केवल इस्लामिक शिक्षा तक ही सीमित न रहकर गणित, दर्शनशास्त्र, इतिहास की शिक्षा हासिल की। आजाद को उर्दू,फारसी, हिंदी, अरबी और इंग्लिश में महारथ हासिल थी। आजाद आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खां के विचारों से काफी प्रभावित थे। मौलाना आजाद इस्लाम को मानने के साथ ही कट्टरता के विरोधी थे।
आजादी के आन्दोलन में हिस्सा लेते हुए आजादी के आन्दोलन को सांप्रदायिक रंग देने वाले मुस्लिम नेताओं की आलोचना की थी।उन्होंने 1905 न अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन का जोरदार विरोध किया था। आल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचार को ख़ारिज करने में देर नहीं लगाया। मौलाना आजाद ने 1912 में उर्दू पत्रिका अल हिलाल की शुरुआत की जिसके चलते लोगों उन्हें एक पत्रकार के रूप में देखा। जिसका उद्देश्य युवाओं को क्रांतिकारी आन्दोलन से अधिक संख्या में जोड़ने और हिन्दू मुस्लिम एकता को मजबूत करना था। उन्होंने कई प्रकार की गुप्त गतिविधियों में हिस्सा लिया जिसके चलते उन्हें 1920 में जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने खिलाफत आन्दोलन को सबसे निचले तबके तक पहुंचाने न महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। मौलाना आजाद महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन से जुड़कर अंग्रेजों का जमकर विरोध किया।