मुंबई [अमन न्यूज नेटवर्क ] दृष्टिहीनता आज पूरी दुनिया में चिंता का एक बड़ा विषय बन चुका है। अनुमानों के अनुसार, भारत में तकरीबन 20 लाख लोग आँखों के बाहरी हिस्से पर मौजूद पारदर्शी परत, यानी कॉर्निया को हुए नुकसान की वजह से दृष्टिहीनता से पीड़ित हैं। ऐसे मामलों में अगर बिना देरी किए तुरंत ट्रांसप्लांटेशन किया जाए, तो कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के एक चौथाई से ज्यादा मरीजों को आसानी से ठीक किया जा सकता है। शरीर के दूसरे अंगों की तरह, मृत्यु के बाद भी आँखों के कॉर्निया का दान किया जा सकता है। डॉ. नीता शाह, प्रमुख- क्लीनिकल सेवाएं, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल मुंबई कहते हैं, "हर साल कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के हजारों मामले सामने आते हैं जिससे इस क्षेत्र में चिकित्सा पर मौजूदा बोझ बढ़ता ही जा रहा है। हर साल कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन की मांग में बढ़ोतरी हो रही है, और इस कमी को पूरा करने के लिए आम लोगों को नेत्रदान के बारे में शिक्षित करना जरूरी हो गया है।”
वह आगे कहते हैं कि, डॉ. अग्रवाल आई हॉस्पिटल में अद्वितीय PDEK प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसके जरिए दान की गई एक आँख से दो या दो से ज्यादा लोगों की आँखों को रोशनी प्रदान की जा सकती है।
नेत्रदान कौन कर सकता है?
नेत्रदान करने वाला व्यक्ति किसी भी लिंग या उम्र का हो सकता है। हालांकि, एड्स, हेपेटाइटिस-बी और सी, रेबीज, सेप्टिसीमिया, एक्यूट ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर), टेटनस, हैजा, तथा मेनिनजाइटिस और एन्सेफलाइटिस जैसी संक्रामक बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति के लिए नेत्रदान प्रतिबंधित हो सकता है।
Dr. Nita Shah नेत्रदान के संबंध में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कुछ बिंदुओं का उल्लेख करते हैं।मृत्यु के बाद ही नेत्रदान किया जा सकता है।
- मृत्यु के बाद 4-6 घंटे के भीतर ही आँखें निकाल दी जानी चाहिए।
- आँखों को केवल पंजीकृत चिकित्सक द्वारा ही निकाला जा सकता है।
- आँखों को निकालने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए आई बैंक की टीम मृतक के घर या अस्पताल का दौरा करेगी।
- आँखों को निकालने की प्रक्रिया से अंतिम संस्कार में देरी नहीं होती है, क्योंकि पूरी प्रक्रिया में केवल 20-30 मिनट लगते हैं।
- संक्रामक रोगों से बचने के लिए थोड़ी मात्रा में रक्त निकाला जाएगा।
- आँखों को निकालने की प्रक्रिया में चेहरे को बिगाड़ा नहीं जाता है।
- दानकर्ता और प्राप्तकर्ता, दोनों की पहचान गोपनीय रखी जाती है।
- नेत्रदान और नेत्र संग्रह प्रक्रियाओं के संबंध में सबसे अहम बात यह है कि, मृतक के नेत्रदान को उसके नजदीकी परिजनों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए, भले ही मृतक ने अपनी आँखें दान कर दी हों।
- निकट–दृष्टि दोष, दूर–दृष्टि दोष, या एस्टिग्मेटिज़्म के लिए चश्मे का उपयोग करना, या यहां तक कि मोतियाबिंद के लिए ऑपरेशन कराना विपरीत संकेत नहीं है।
- आँखों को निकालने की प्रक्रिया
- मृत्यु के छह से आठ घंटे के भीतर आँखों को निकालना बेहतर होता है। आँखों को निकालने की प्रक्रिया के