मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] देशभर में तीन करोड़ से भी ज़्यादा बच्चे हैं जिन्हें विशेष तौर पर देखभाल व पारिवारिक सुरक्षा की ज़रूरत है. यूनिसेफ़ के मुताबिक, ये वो बच्चे हैं जो अपने बुनियादी अधिकारों से तो वंचित हैं ही, साथ ही बड़े पैमाने पर शोषण का भी शिकार हैं. यह जानकारी SOS चिल्ड्रेन्स विलेजेज़ ऑफ़ इंडिया के महासचिव श्री सुमांता कर ने ‘परिवारों के सशक्तिकरण व बच्चों को बेसहारा छोड़े जाने से बचाव संबंधी उपाय’ नामक कार्यशाला के दौरान मीडिया से मुखातिब होने के दौरान दी.
उल्लेखनीय है कि इस विशेष कार्यशाला का आयोजन SOS दिवस के मौके पर किया गया. यह दिवस SOS चिल्ड्रेन्स विलेजेज़ ऑफ़ इंडिया के संस्थापक डॉ. हरमन ज्मिनर की जयंती के तौर पर विशेष रूप में मनाया जाता है. मीडिया को संबोधित करते हुए SOS चिल्ड्रेन्स विलेज़ेज ऑफ़ इंडिया के महासचिव श्री सुमांता कर ने कहा, “बच्चों को बेसहारा छोड़े जाने की यूं तो कई वजहें होती हैं, मगर ऐसा करने की प्रमुख वजहों में आर्थिक तंगी, सामाजिक चुनौतियां, बीमारी, नशे की लत, लैंगिक भेदभाव आदि शामिल हैं. हमने देखा कि किस तरह से कोरोना काल में बड़े पैमाने पर लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा था, जिस चलते कम़जोर आर्थिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखनेवाले परिवारों को अत्याधिक दबाव से गुज़रना पड़ा था. ऐसे में भारी तादाद में बच्चों को दैनिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पौष्टिक भोजन से वंचित भी होना पड़ा. इतना ही नहीं, लम्बे समय तक चले लॉकडाउन की वजह से बच्चों के शोषण और उन्हें बेसहारा छोड़ दिये जाने के मामलों में भारी वृद्धि देखी गयी थी.
ऐसे में आर्थिक तौर पर मजबूर परिवारों का सशक्तिकरण बेहद आवश्यक हो जाता है ताकि हर बच्चे की उसके परिवार की ओर से बेहतर ढंग से देखभाल की जा सके, उसका अच्छे से विकास हो सके और परिवार की ओर से उसकी तमाम आवश्यकताएं पूरी की जा सकें. इससे बच्चों को बेसहारा छोड़ दिये जाने की आशंका भी बेहद कम हो जाती है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों में बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य, स्वच्छता, पौष्टिक आहार, शिक्षा, बच्चों की सुरक्षा आदि जैसे तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर जागरुकता फ़ैलाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. इसके अलावा, उन्हें विभिन्न तरह का प्रशिक्षण देते हुए उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करना और उनकी आय में वृद्धि के उपाय करना भी अहम साबित होता है. जब आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों को आय का स्रोत मुहैया कराया जाता है और उन्हें बच्चों की समस्याओं के प्रति जागरुक बनाया जाता है, तो बच्चों की देखभाल करनेवाले लोग और ऐसे समुदाय ख़ुद को और भी सशक्त महसूस करते हैं. वे आगे कहते हैं, “हम अपने परिवार सशक्तिकरण कार्यक्रम के तहत आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों और समुदायों को उनकी कार्यक्षमता को पहचानने में मदद करते हैं ताकि वे अपने बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश कर सकें और किसी भी तरह से बच्चों के संपूर्ण विकास की प्रक्रिया बाधित ना हो. इससे उन्हें बेसहारा छोड़ दिये जाने की घटनाएं भी आशंका भी बहुत ही कम हो जाती है.”
उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े ग़ैर-सरकारी संगठन और पूरी तरह से एक आत्मनिर्भर संस्था के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले SOS चिल्ड्रेन्स विलेजेज़ ऑफ़ इंडिया का कार्य देशभर के 31 इलाकों में फैला हुआ है. संस्था की ओर से चलाए जा रहे परिवार सशक्तिकरण योजना के माध्यम से मार्च, 2022 तक 17,300 परिवारों और 31,671 बच्चों को सहायता मुहैया कराई जा चुकी है. अक्सर कमज़ोर पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखनेवाले बच्चों पर शोषण का ख़तरा मंडराता रहता है. उनपर बेसहारा छोड़ दिये जाने और अभिभावकों द्वारा की जानेवाली ज़रूरी देखभाल से बंचित हो जाने का ख़तरा भी लगातार रहता है. संस्था ऐसे परिवारों और निजी लोगों की पहचान कर उन्हें आर्थिक सहायता पहुंचाने की कोशिश करती है. संस्था की ओर से उन्हें आजीविका के साधन मुहैया कराने के साथ-साथ उन्हें कौशल प्रशिक्षण और आर्थिक ज्ञान भी दिया जाता है. इससे इन परिवारों को बदलाव के अनुकूल होने और रोज़गार हासिल कर जीवनयापन करने में आसानी होती है. बच्चों की उत्तम देखभाल के साथ-साथ उनकी कार्यक्षमता का अच्छी तरह से उपयोग करने का एहसास कराया जाता है ताकि बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के उनके बुनियादी अधिकारों को सुरक्षित किया जा सके. इससे बच्चों को आत्मनिर्भर बनने और आर्थिक मुसीबतों से बाहर निकलकर अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने में ख़ासी मदद मिलती है.
बाल पंचायत के माध्यम से बच्चों को उनके सामने मौजूद आज की तमाम चुनौतियों को दूर करने का अवसर प्राप्त होता है. इसके माध्यम से उनमें नेतृत्व की क्षमता का निर्माण और उनके सोचने की क्षमता में भी वृद्धि होती है. SOS चिल्ड्रेन्स विलेजेज़ ऑफ़ इंडिया के परिवार सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरुआत साल 2006 में की गयी थी. इस विशेष कार्यक्रम का उद्देश्य साल 2030 तक कुल 70,000 बच्चों का सर्वांगीण विकास करना और उन्हें पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाना है.