मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] भारत में होने वाली मौतों में दिल की बीमारियां भी एक बड़ा कारण हैं, जो हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बोझ की तरह है। विश्व हृदय दिवस के मौके पर, मुंबई सेंट्रल स्थित वॉकहार्ट हॉस्पिटल ने बेस्ट (BEST) के 100 से ज्यादा कर्मचारियों को सीपीआर (CPR) की तकनीक सिखाकर दिल की बीमारियों के बारे में शिक्षित करने एवं जागरूकता फैलाने के लिए बेस्ट (BEST) के साथ साझेदारी की है। बेस्ट मुंबई के निवासियों की जीवन-रेखा है, क्योंकि हर दिन औसतन 1.9 मिलियन यात्री इससे सफर करते हैं।
इस बारे में बात करते हुए, डॉ. रवि गुप्ता, कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट, वॉकहार्ट हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल, ने कहा, “हमारे देश के लिए यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि यहां दिल के दौरे और कार्डियक अरेस्ट की वजह से युवाओं को अपनी जान गंवानी पड़ रही है, और इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है। हर साल दिल की बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं। भारतीयों में हार्ट अटैक का एक प्रमुख कारण यह है कि उनमें वंशानुगत रूप से दिल का दौरा पड़ने की संभावना अधिक होती है, साथ ही पश्चिमी देशों के लाइफस्टाइल को अपनाने से म्यूटेशन में भी बदलाव होता है जिसके चलते हमें दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। युवाओं में तनाव का बढ़ना इसका दूसरा कारण है, क्योंकि तनाव से जूझ रहे लोगों में दिल की बीमारियों के विकसित होने का खतरा अधिक होता है। भले ही आपको कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हों, तब भी आपको साल में एक बार स्ट्रेस टेस्ट, 2डी इको, कोलेस्ट्रॉल तथा ईजीसी के साथ-साथ डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की जाँच जरूर करानी चाहिए।
डॉ. अनिल कुमार सिंघल, सीएमओ, बेस्ट, मुंबई, कहते हैं, “बेस्ट ने अपने कर्मचारियों के बीच दिल से संबंधित बीमारी के बोझ को कम करने के लिए साल 2016 में “स्वस्थ हृदय अभियान” की शुरुआत की थी। यह अभियान बेहद कारगर साबित हुआ है, क्योंकि पिछले 7 सालों के दौरान एंजियोप्लास्टी, बाईपास सर्जरी की आवश्यकता वाले कर्मचारियों की संख्या में बड़े पैमाने पर कमी आई है। कार्डियोलॉजिस्ट कोविड के बाद के दौर में CVD के मामलों में बढ़ोतरी की संभावना के बारे में अधिक चिंतित हैं, इसलिए हम अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए उस अभियान को दोबारा शुरू कर रहे हैं।”
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर तीन मौतों में से एक – यानी हर साल 17.9 मिलियन लोगों की मौत – दिल की बीमारियों के कारण होती है, जिनमें से 86 प्रतिशत मामला को रोकथाम एवं उपचार के जरिए रोका जा सकता है या कुछ समय के लिए टाला जा सकता है।