लखनऊ [सुशील कुमार पांडेय] उत्तर प्रदेश के गांवों में प्रधान प्रत्याशियों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भले ही कोरोना महामारी के चलते यह चुनाव अप्रैल के आख़िरी सप्ताह के बाद होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। लेकिन अभी से गांव में बैठक शुरू है। जहाँ पहले सामाजिक कार्य करने वाले व ईमानदार लोग ही चुनाव मैदान में उतरते थे और उनमें गांव के विकास करने का जज्बा दिखता था। अब तो ऐसे लोग पैसे के बल पर प्रधान बनने का मन बनाये होंगे जिनको गांव के विकास से कोई सरोकार नहीं , उन्हें तो मनरेगा की निधि दिखाई पड़ रही है।
देखा भी गया है कि अधिकांश प्रधान ऐसे हैं। जो कि अपने 5 साल के कार्य काल के दौरान कभी भी विधायक या सांसद या जिला अधिकारी से मिलकर गांव के विकास की बात कहे हों। सही तौर पर देखा जाए तो यदि ईमानदारी से मनरेगा निधि का सदुपयोग किया जाए तो गाँव स्वर्ग बन जाए।उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में मनरेगा के नाम पर लूट मची है। इसमें ब्लॉक के तमाम कर्मचारी से लेकर अधिकारी शामिल हैं। सरकारी पैसे का बन्दरबाँट हो रहा है।बहुत से मनरेगा के लिस्ट में गांव के ऐसे लोगों का नाम शामिल किया गया है जिनके हाथों में कभी फावड़ा न दिखा हो ।इस गोरखधंधे में ब्लॉक सचिव से लेकर आडिट अधिकारी व बैंक कर्मी भी शामिल हैं। चुनाव के दौरान सूरा व मटन का बोलबाला दिखता है और गांव वाले भी इसका खूब आनंद लेते हैं और ऐसे ही प्रत्याशी को वोट भी देने से नहीं हिचकते हैं। गांवों में प्रधानी चुनाव के दौरान यह भी देखने को मिलता है कि यदि आप भले सुयोग्य प्रत्याशी हैं लेकिन दारू व मटन खिलाने में पीछे रह गए तो आपको वोट नहीं मिलेगा। ग्रामीणों को कौन समझाए कि चुनाव तक ही तुम्हारी यह सेवा होगी। चुनाव प्रचार के दौरानप्रत्याशी तुम्हारे पैर पकड़ेंगे । इतना ही नहीं रोयेंगे भी और घड़ियालू आंसू भी बहाएंगे। गांव को स्वर्ग बनाने का सपना दिखाएंगे। ग्रामीणों पर भी तरस आता है कि क्या वे इतने सालों में गांव के प्रत्याशी को परख नहीं पाए। यह मर ग्रामीणों से सवाल है।दोस्तों आप गांव प्रधानी में ऐसे प्रत्याशी को चुनें जिसका चाल, चलन व विचार ठीक हो। नहीं तो आपको बाद में 5 साल तक पछताना ही पड़ेगा। क्योंकि यह विधान सभा व लोकसभा का चुनाव नहीं है कि आप प्रत्याशी के बारे में जानते नहीं।
ReplyForward
|