नई दिल्ली [ युनिस खान ] बिहार चुनाव की हार के बाद कांग्रेस नेतृत्व संगठन को चुस्त दुरुस्त बनाने के मुद्दे पर कांग्रेस दो धडों में विभाजित होती दिखने लगी है। जिसमें एक धडा संगठन को मजबूत कर चुनाव जीतने के लिए पार्टी को तैयार करने के लिए सुझाव दे रही है वहीँ संगठन पर सवाल उठाने वालों को पार्टी विरोधी बताने की कोशिस हो रही है। चापलूसी कांग्रेस के लिए अधिक घातक हो सकती है। पार्टी आलाकमान को इस पर विचार करने की जरुरत है। कांग्रेस पार्टी के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर करते हुए संगठन की दशा-दिशा पर सवाल उठाने वाले नेताओं की गिनती धीरे-धीरे बढने लगी है। कपिल सिब्बल के सवालों की चिंगारी को पी चिदंबरम सरीखे नेता ने सही ठहराकर पार्टी में हलचल मचा दिया है वहीँ गुरूवार को बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने स्पष्ट कह दिया है की चुनाव जीतना है तो संगठन की कमजोरी दूर करने के लिए बड़े स्तर पर बदलाव करने की जरुरत होगी।
कांग्रेस के नये अध्यक्ष के लिए जनवरी में प्रस्तावित चुनाव से पहले संगठन की कमजोरी के सवालों से साफ है कि सवाल उठाने वाले नेताओं की तादाद बढ़नी ही है। कपिल सिब्बल की बातों का समर्थन कर चिदंबरम ने बुधवार को कांग्रेस की अंदरूनी गुटीय सियासत को गरमा दिया है। जबकि अखिलेश सिंह ने चाहे हाईकमान पर सीधे उंगली उठाने से परहेज किया मगर पार्टी की कमजोर स्थिति पर बेबाक चर्चा को जरूरी बताया। वहीं सिब्बल पर हाईकमान समर्थक नेताओं की ओर हमले के कारण कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं में रोष बढ़ रहा है जो फिलहाल तो चुप है लेकिन कभी भी वे मुंह खोल सकते हैं।
पार्टी आला कमान आत्मचिंतन की बजाय अपनी तारीफ करने वालों को खुश करती दिखाई दे रही लेकिन जो पार्टी के भविष्य की चिंता में आवाज उठा रहे हैं।उन्हें अनसुना किया जा रहा है जो कांग्रेस की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। पार्टी अतीत से सीख लेकर भविष्य में चुनाव जीतने की तैयारी कब करेगी । अब यदि उसे भाजपा व राज्य स्तरीय विरोधी दलों का सामना करना है तो पार्टी संगठन और अनुभवी नेताओं को एकजुट रखकर नए व युवा नेताओं को जिम्मेदारी देना होगा। पार्टी संगठन मजबूत करने के लिए जनाधार वाले नेताओं को आगे लाना होगा । सिर्फ बंद कमरों से पार्टी संगठन चलाना और चुनाव जीतने के दिन अब लद चुके है अब पुरे समय संगठन के कार्य में सक्रीय रहकर जनता के संपर्क में रहना होगा। चुनाव के समय जनता के बीच जाने से अब जनता का समर्थन नहीं मिलता।
बिहार की हार को लेकर शुरू हुए कांग्रेस के अंदरूनी विवाद में सिब्बल के उठाए सवालों को चिदंबरम ने जहां अपने हिसाब से दोहराया है। वहीं गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक के उपचुनाव के नतीजों को यह कहते हुए कहीं ज्यादा चिंताजनक करार दिया कि इन राज्यों में पार्टी संगठन की कोई तैयारी नहीं है या जमीन पर कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है। चिदंरबम ने तो बिहार में कांग्रेस के अपनी क्षमता से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडने के फैसले पर भी सवाल खडा किया था। अखिलेश ने भी सीट बंटवारे की चूक की ओर इशारा किया और कहा कि कांग्रेस ने काफी ऐसी सीटें ली जिन्हें स्वीकार नहीं करना चाहिए था मगर जल्दबाजी में ऐसा हुआ। अखिलेश ने कहा कि वे हार की संपूर्ण समीक्षा के लिए राहुल गांधी से चर्चा के लिए उन्होंने वक्त भी मांगा है ताकि भविष्य की चुनौतियों पर बात की जाए। अब देखना है कि राहुल गांधी उन्हें कब समय देते है और कांग्रेस नेतृत्व नेताओं के सुझाये मुद्दों की किस तरह लेती है।