




ठाणे [ युनिस खान ] ठाणे के प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में 430 मनोरोगी पूर्ण रूप से स्वास्थ्य होने के बाद अपनों की राह देख रहे है। परिजनों से मिलने व अपने घर जाने की उनकी इच्छा पूरी होगी या नहीं अब इसकी उम्मीदें भी कम होने लगी हैं। ऐसे मरीज स्वास्थ्य होने के बावजूद अस्पताल में लावारिस की तरह जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। इनमें से 37 मरीज ऐसे है जो स्वास्थ्य होने के बाद भी बीते 20 सालों से अपनों के आने की राह ताक रहे हैं। अस्पताल के अधीक्षक डा नेताजी मुलिक ने कहा कि ठीक हुए मरीजों को उनके परिजन लेना नहीं चाह रहे हैं। अस्पताल में भर्ती रोगियों के परिजन और रिश्तेदार गांव और शहरों के साथ ही संपर्क क्रमांक तक को बदल चुके हैं जिससे संपर्क करना भी मुश्किल हो गया है। ठाणे प्रादेशिक मनोचिकित्सक अस्पताल के अधीक्षक डा नेताजी मुलिक ने बताया कि 20 सालों से अब तक कुल 440 रोगी ठीक हो चुके हैं। इनमें से 10 से 20 साल के बीच ठीक हुए 37 रोगी, पांच से 10 साल के बीच ठीक हुए 33 रोगी, दो से पांच साल के बीच ठीक हुए 61 रोगी, छह से 12 माह के बीच ठीक हुए 75 रोगी, तीन से छह माह के बीच ठीक हुए 167 रोगी और एक से दो माह के बीच ठीक हुए 67 रोगी अस्पताल में लावारिस की जिंदगी बिताने के लिए मजबूर है। उन्होंने कहा कि ठीक होने के बाद स्कॉट कर रोगियों को उनके घर तो ले जाते हैं, लेकिन घरवाले उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति 182 से अधिक स्वास्थ्य मरीजों को अनाथालय में रखा गया है।
ठाणे प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में इस समय कुल 907 मनोरोगियों का इलाज शुरू है। इनमें 558 पुरुष और 349 महिला रोगियों का समावेश है। अस्पताल में कुल 1850 खाट है, जिसमें 1050 पुरुषों और 800 महिलाओं के लिए आरक्षित रखा गया है। वर्तमान में 953 बेड खाली पड़े हुए हैं। डा मुलिक ने कहा कि रोजाना करीब 5 से 10 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दी जाती है और उतने ही मरीज भर्ती भी होते हैं। अस्पताल के अधीक्षक डा मुलिक ने बताया कि मुंबई, ठाणे, पालघर, रायगड, नासिक, जलगांव, धुले और नंदुरबार जिले ठाणे मनोचिकित्सालय के परिक्षेत्र में आते हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल इस समय सर्वाधिक सिजोफ्रेनिया के रोगी सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2,318 मरीज का ओपीडी और आईपीडी के माध्यम से उपचार चल रहा है। इसके साथ ही डिमेंशिया के 34, डिप्रेशन के 68, इपिलेप्सी विथ साइकोसिस के 79, एसआर के 179 का इलाज चल रहा है। इसी तरह मतिमंद, डिसऑर्डर, ड्रग एडिक्ट के मरीजों का भी समावेश है।
ऐसे मरीजों को साथ रख देखभाल करना खर्चीला होता है और निजी डे-केयर सेंटर में रखना मध्यम आयवर्ग के परिवार के लिए संभव नहीं है। डा मुलिक ने कहा कि सरकारी डे-केयर सेंटर बढ़ाने पर काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि हर शहर में कम से कम 1-2 डे-केयर सेंटर की जरूरत है।