मुंबई [ अमन न्यूज नेटवर्क ] दीपावली को अक्सर दीयों और पटाखों का त्यौहार माना जाता है। निश्चित रूप से, पटाखे जलाने के लिए उम्र कोई सीमा नहीं है और सभी को आतिशबाजी पसंद होती है। यदि पटाखों के साथ इस तरह के सेलीब्रेशन को एक परंपरा के रूप में माना जाता है, तो ऐसा करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।इस आशय का आवाहन चीफ विटेरियो रेटिनल सर्विसेज, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल्स वर्ल्डवाइड और आदित्य ज्योत आई हॉस्पिटल, ए यूनिट ऑफ डॉ अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल, मुंबई के पद्मश्री प्रो. डॉ. एस. नटराजन किया है। इस मौसम में होने वाली अधिकांश आतिशबाजी की चोटें आंखों पर सीधा असर डालती हैं जिससे आंखें गंभीर रूप से चोटिल हो जाती हे। पटाखों की वजह से हर साल बड़ी संख्या में आंखों के चोटिल होने के मामले सामने आते हैंv असल में, हाथ और उंगलियों के बाद आंखें ही सबसे आम प्रभावित होने वाला अंग है।कुछ सामान्य चोटें स्पार्कलर्स और बम के कारण होती हैं, ‘चक्र‘ पटाखों से भी आंखें चोटिल हो सकती हैं।
वे व्यक्ति जिनको अधिक खतरा हो सकता है
पटाखे जलाने वाले व्यक्तियों के साथ, वहां खड़े रहने वालों को आंखों में चोट लगने का खतरा 50% अधिक होता है। सड़कों पर जलते हुए पटाखों के संपर्क में आने वाले राहगीरों को भी खतरा होता है।
किस तरह से चोटिल हो सकते हैं
ओकुलर इंजरी में हल्की जलन और कॉर्नियल एब्रेशंस से लेकर रेटिना संबंधी समस्याओं और ओपन ग्लोब इंजरी से संभावित अंधेपन तक शामिल है। पटाखों में मिलाए गए बारूद में केमिकल की वजह से केमिकल इंजरी होती है। लगातार धुएं से आंखों में जलन और आंखों से पानी आने की समस्या हो सकती है। पटाखों से निकलने वाले धुएं से लैरींगाइटिस और गले के अन्य संक्रमण भी हो सकते हैं। स्पार्कलर खतरनाक होते हैं क्योंकि वे सोने को पिघलाने के लिए पर्याप्त तापमान (1,800 डिग्री फारेनहाइट) पर जलते हैं। वह तापमान पानी के उबलने से लगभग 1,000 डिग्री अधिक गर्म होता है, इतना गर्म होता है कि कांच पिघला सकता है और स्कीन को थर्ड–डिग्री जला देता है। ऐसी चोटों से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरतने की जरूरत है। अधिकांश पटाखों में बारूद होता है, जिससे ये डिवाइसेस फट जाते हैं। चूंकि पटाखों के विस्फोट अप्रत्याशित होते हैं, व्यक्ति के सावधान या ध्यान रखने के बावजूद चोट लग सकती है।