




इस मुशायरे का उद्घाटन पुरातत्व विभाग के पूर्व डायरेक्टर गुलाम सय्यदैन ने अपने अनोखे अंदाज में किया।आपने उर्दू के महत्व और शायरी की उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया।इस मौके पर मुशायरा कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट यासीन मोमिन ने डॉ मलिकजादा मंजूर को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी।संस्था के सचिव सोहेल मुश्ताक फकीह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुशायरा सिर्फ शेर व शायरी प्रस्तुत करने का नाम नही है बल्कि मुशायरे हमारी तहज़ीब का अहम हिस्सा हैं।
इस अवसर पर संस्था के उपाध्यक्ष जिया अब्दुल शकूर मोमिन,कोषाध्यक्ष फहद बुबेरे,सहसचिव नवीद बशीर खरबे एवं अन्य सदस्यगण उपस्थित थे।देश के जिन प्रख्यात शायरों ने मुशायरे में अपनी रचनाऐं प्रस्तुत की उनमें मलिकजादा जावेद, नईम अख्तर खादमी,बदर वास्ती, नुसरत मेंहदी, हामिद भुसावली और सुफयान काजी,मुख्तार यूसुफी, नदीम सिद्दीकी, कमर सिद्दीकी, इरफान जाफरी, कासिम इमाम और उबैद आजम आजमी ने अपनी कविता पेश की।हुसैन साहिल, अमीर हमजा साकिब और अमीर हमजा हलबे ने स्थानीय शोअरा की ओर से नुमाइंदगी करते हुए अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत किया।
इस खूबसूरत मुशायरे का सूत्र संचालन युसूफ दीवान ने अपने खास असरदार लहजे में किया।मुशायरे की सफला में आयोजक मंडल के सदस्यों के अलावा, प्रिंसिपल जियाउर्रहमान अंसारी,मुख्लिस मदू, टेक्निकल टीम के सदस्यो सहित बड़ी संख्या में श्रोताओ की उपस्थित का विशेष योगदान रहा।फहद बुबेरे के आभार प्रदर्शन के साथ रात एक बजे मुशायरा समाप्त हुआ।