भिवंडी [ एम हुसैन ] भिवंडी में टीबी रोगियों की संख्या कम होने के बजाय दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। टीबी रोगियों की संख्या में होने वाली भारी वृद्धि शहर के लिए चिंता का विषय बन गई है । राज्य के अन्य शहरों की अपेक्षा भिवंडी शहर में यह रोग साल दर साल बढ़ता जा रहा है, इसके बावजूद मनपा स्वास्थ्य विभाग मूक दर्शक बना हुआ है। जबकि केंद्र सरकार ने 2025 तक इस बीमारी को जड़ से समाप्त करने का लक्ष्य रखा है ।
उल्लेखनीय है कि भिवंडी पावरलूम शहर है यहां एक लाख जनसंख्या पर टीबी रोगियों का अनुपात लगभग 500 तक पहुंच गया है। यह राज्य के अन्य शहरों की तुलना में काफी अधिक है, जो शहर के नागरिकों के लिए चिंता का एक बड़ा कारण बना हुआ है । शहर की युवा पीढ़ी बड़ी तेजी से इसके प्रभाव में आ रही है।नागरिकों का आरोप है कि टीबी विभाग काफी धीमी गति से काम कर रहा है, मनपा टीबी विभाग के अनुसार वर्ष 2017 में टीबी रोगियों की संख्या 2257 थी, लेकिन 2018 में बढ़कर यह संख्या 3187 हो गई। जबकि पिछले वर्ष 2019 में निजी अस्पतालों और सरकारी अस्पताल की कुल 4408 टीबी रोगियों की शिनाख्त हुई थी। इस साल 18 नवंबर तक केवल 2624 मरीज पाए गए हैं , पिछले दो सालों में 38-40 प्रतिशत मरीजों की वृद्धि हुई है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के कारण टीबी मरीजों की पहचान नहीं हो पाई है, मनपा का प्रतिवर्ष का पांच हजार मरीजों की पहचान करने का लक्ष्य है।
टीबी विभाग प्रभारी डॉ. बुशरा सैय्यद ने जानकारी देते हुए बताया कि भिवंडी में प्रतिमाह 30 से 40 एमडीआर टीबी मरीजों की पहचान हो रही है, जिनका उपचार काफी महंगा है। एक एमडीआर मरीज के उपचार के लिए लगभग 18 लाख रुपए की दवा लगती है, जिसे सरकार द्वारा निःशुल्क दिया जाता है।भिवंडी में 50 एमडीआर टीबी मरीजों का उपचार भी शुरू कर दिया गया है और अभी कई मरीज दवा लेने के लिए प्रतीक्षा सूची में हैं।उन्होंने बताया कि निजी अस्पतालों के डॉक्टरों द्वारा टीबी मरीजों की जानकारी नहीं दी जाती है। जबकि टीबी मरीज पाए जाने के बाद उन्हें जानकारी तुरंत दिया जाना चाहिए। डॉ. बुशरा के अनुसार शहर में टीबी मरीजों की संख्या कम हो रही है ।
सरकार टीबी प्रभावित लोगों को निःशुल्क दवा के साथ उनके स्वस्थ आहार के लिए 500 रुपए प्रति माह देती है, सरकार देश को टीबी रोग से पूरी तरह से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है,जिसके लिए यह राशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से रोगी को प्रदान की जा रही है।स्वस्थ आहार के लिए दी जाने वाली रकम को मरीज़ के बैंक खाते में सीधे भेजने की योजना है,लेकिन 2017 से 2019 के दो वर्षों के बीच में भी सभी रोगियों के बैंक खाते में भुगतान नहीं किया जा सका है। 2017 में केवल 135 रोगियों के बैंक खाते में 3.80 लाख रुपए ही भेजा गया है,जबकि यह राशि 22.40 लाख रुपए होनी चाहिए थी, लेकिन केवल 24 प्रतिशत मरीजों को ही स्वस्थ आहार का लाभ मिल सका है।2018 में 42 प्रतिशत रोगियों को 57 लाख 500 रुपए ही दिए गए हैं,जबकि मरीजों की संख्या के अनुसार 1.22 करोड़ रुपए मरीजों के खातों भेजा जाना चाहिए था ।इसी प्रकार 2019 में 55 प्रतिशत रोगियों के बैंक खाते में 74 लाख रुपए भेजे गए हैं।जबकि इस वर्ष 1.70 करोड़ रुपए मरीजों के खातों में भेजा जाना चाहिए था, लेकिन 45 प्रतिशत रोगी सरकार की इस योजना के लाभ से वंचित रह गए हैं। अब तक केवल 68 प्रतिशत यानी 1207 मरीजों को ही इस योजना का लाभ मिल सका हैं, अभी तक 27.66 लाख रुपए दिए गए हैं,जबकि यह राशि 63 लाख रुपए से भी अधिक होनी चाहिए थी ।
टीबी विभाग के विशाल बोडके ने बताया कि कुछ गलत खातों के कारण पैसा नहीं मिल सका और कुछ के पास बैंक खाते नहीं थे। इस संबंध में टीबी विभाग की प्रभारी डॉ. बुशरा सैय्यद ने बताया कि स्थानीय डाकघर से जीरो बैलेंस खाता खोलने के लिए संपर्क किया गया है, खाता खोलने का काम जल्द ही शुरू हो जाएगा।एक साल पहले गुरु कृपा विकास संस्था नामक एक गैर सरकारी संगठन को 300 रुपए प्रति मरीज़ एक्सरे का लगभग 15 लाख रुपए का भुगतान किया गया है। उन्होंने बताया कि सरकार के कुछ दिशा-निर्देशों के कारण इस कार्य को आउट सोर्सिंग कराया जा रहा है।जबकि इस विभाग के बगल में स्थित आईजीएम उप जिला अस्पताल में डिजिटल एक्स-रे की सुविधा होने के बावजूद सालाना 15 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। आरोप लगाया गया है कि मनपा के एक डॉक्टर को लाभ पहुंचाने के लिए इस प्रकार का ठेका दिया गया है। यही वजह है कि आईजीएम उप जिला अस्पताल में मरीजों का एक्स-रे नहीं कराया जाता है। टीबी विभाग में 24 कर्मचारियों का स्टाफ हैं,जिनमें 15 कर्मचारियों को मनपा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात किया गया हैं,लेकिन वहां समय पर ड्यूटी नहीं करते है, जिसके कारण शहर में टीबी रोग तेजी से फैल रहा है।
उक्त संदर्भ में डॉ. बुशरा सैय्यद – प्रभारी टीबी विभाग ने बताया कि निजी दवाखाना में टीबी मरीज पाए जाने पर उनकी सूचना तुरंत दिया जाना चाहिए, टीबी मरीजों की जानकारी न देने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध आईपीसी के तहत कार्रवाई की जा सकती है ।