ठाणे [ युनिस खान ] वागले इस्टेट की पांच मंजिला कामगार बीमा अस्पताल की हालत कई सालों से दयनीय बनी हुई है। प्रशासन की उदासीनता के चलते 500 बिस्तरों वाले अस्पताल में सिर्फ 8 से 10 मरीजों का ही इलाज हो रहा है और सभी वार्ड बंद होने के कारण मरीजों को मुलुंड ,परेल और सायन के कामगार अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ रहा है। मनसे के जनहित व विधि विभाग के शहर अध्यक्ष स्वप्निल महिंद्रकर ने मांग की है कि प्रशासन जल्द से जल्द अस्पताल को फिर से शुरू कराये।
करीब 44 साल पहले ठाणे में मजदूरों के इलाज के लिए वागले इस्टेट में कामगार राज्य बीमा योजना अस्पताल (ईएसआईसी) की पांच मंजिला इमारत बनाई गई थी। साथ ही, डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की तत्काल उपलब्धता के लिए 27 फ्लैटों की एक चार मंजिला इमारत का निर्माण किया गया था। स्टाफ निवास की जर्जर इमारत को कब गिराया गया और इस स्थान पर क्या योजना है इसकी कोई जानकारी नहीं है। फिलहाल इस अस्पताल की हालत नाजुक है। 500 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में सिर्फ 100 बिस्तर बचे हैं और सरकार की निष्क्रियता के कारण कई विभाग बंद हो गए हैं। गंभीर रूप से बीमार मरीज को मुंबई भेजने के अलावा कोई चारा नहीं है।
कामगार बीमा योजना के पास 50,000 करोड़ रुपये की निधि है। हालांकि, पिछले कई सालों से केंद्र सरकार ने इस अस्पताल की सामान्य देखभाल नहीं की है। इस बात के प्रमाण दिए जा रहे हैं कि पिछले चार साल से इमारत की स्थिति दयनीय हो गयी है। अस्पताल में सोनोग्राफी, आईसीसीयू, लैब आदि कई सालों से बंद हैं। अस्पताल में केवल बाह्य रुग्ण विभाग शुरू है और गंभीर रूप से बीमार लोगों को लेने के लिए कोई साधारण एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है।
कामगार बीमा योजना के पास 50,000 करोड़ रुपये की निधि है। हालांकि, पिछले कई सालों से केंद्र सरकार ने इस अस्पताल की सामान्य देखभाल नहीं की है। इस बात के प्रमाण दिए जा रहे हैं कि पिछले चार साल से इमारत की स्थिति दयनीय हो गयी है। अस्पताल में सोनोग्राफी, आईसीसीयू, लैब आदि कई सालों से बंद हैं। अस्पताल में केवल बाह्य रुग्ण विभाग शुरू है और गंभीर रूप से बीमार लोगों को लेने के लिए कोई साधारण एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है।
मनसे के जनहित व विधि विभाग के शहर अध्यक्ष स्वप्निल महिंद्रकर ने कहा कि एंबुलेंस की हालत खस्ता है। पिछले 44 वर्षों से वागले इस्टेट में कामगार बीमा अस्पताल बनी है जबकि इस अस्पताल के लिए ओसी जारी नहीं किया है। महिंद्रकर ने बताया कि इसके अलावा कई वर्षों से इस अस्पताल का फायर ऑडिट नहीं हुआ है। जहां केंद्र सरकार द्वारा शहर के जीर्णोद्धार के नाम पर अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, वहीं ठाणे जैसे शहरों में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों की हालत खस्ता है। इससे केंद्र सरकार की नीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं।